चलो हम भी गढ़ लें
अपने भगवान और अपना अलग धर्म
हम भी ढूंढ़ लें...
खुद में कोई खूबी और गढ़ लें
अपनी अलग दुनिया!
लेकिन इसके लिए चाहिए
करोड़ों रूपये, ढेर सारा संगमरमर
और कई कोस धरती
और ऊपर से जनता का धन
खर्च करने का माद्दा भी...
चलो इसके लिए खड़ा करें
कोई सामाजिक आन्दोलन
और फिर उसका चोगा ओढ़ कर
हम भी कर सकेंगे
जनता की खून-पसीने की कमाई पर राज
और बना सकेंगे खुद को भगवान...
तो आओ मिलकर हम भी गढे
अपने-अपने धर्म, अपना-अपना भगवान!
5 comments:
तो आओ मिलकर हम भी गढे
अपने-अपने धर्म, अपना-अपना भगवान!..
बहुत उम्दा रचना...
एक गहन विचार लिए बेहतरीन रचना!! बधाई.
व्यंग्य अच्छा बन पड़ा है ..बहुत बढ़िया ..!!
आपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.
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चलो इसके लिए खड़ा करें
कोई सामाजिक आन्दोलन
और फिर उसका चोगा ओढ़ कर
हम भी कर सकेंगे
जनता की खून-पसीने की कमाई पर राज
और बना सकेंगे खुद को भगवान...
इशारा किधर है भाई?
पर लगा है तीर निशाने पर...
देख तमाशा, भई देख तमाशा...
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