Thursday 26 June 2008

यही है लोकतंत्र...!

राजनीतिक चाय पार्टियों और राजनीतिक तलाक़ जैसी
शब्दावली वाले इस युग में
बहुत अहमियत है राजनीतिक बयानबाजी की
इसके लिए पार्टियाँ
करती हैं एक बड़ी राशिः खर्च आजकल।
बड़े-बड़े विद्वानों की मदद ली जाती है
लोक-लुभावने नारों और शब्दावली के अनुसन्धान पर।

लेकिन आम जनता के लिए
नहीं है कोई अहमियत
बड़े-बड़े शब्दों और उनके निहितार्थों की
क्यूंकि उन्हें जीना है
उसी रोज-रोज के चिक-चिक के साथ
जिनके साथ वे पैदा हुए
और जिनके साथ ही बड़े हुए...

और अब जिस रोज-रोज की चिक-चिक ने
बना लिया उनकी जिंदगी में अपना स्थान
सुबह जागने से लेकर देर रात को
थककर चूर हो जाने तक।
और फ़िर उंघती आंखों को मलते हुए
अगले दिन के खर्च को
उँगलियों पर जोड़ते हुए
और फ़िर उन्हें जुटाने के उपायों पर
गौर करते हुए...सो जाने वाले लोगों के लिए,
नहीं है कोई अहमियत
बड़े-बड़े शब्दों और बड़ी-बड़ी बातों की।

क्यूंकि नहीं है ये उनकी जिंदगी का हिस्सा
उनके लिए ये बस
टीवी पर चलने वाला एक तमाशा है
और बुद्धिजीवी तबके के लिए
यही है लोकतंत्र...

2 comments:

Unknown said...

आपके ब्लॉग को Sursaa Hindi Blogs ( http://sursaa.in/hindi/blogs/ ) पे देखा, काफ़ी अच्छा लिखा है आपने

Udan Tashtari said...

सही कह रहे हैं: यही है लोकतंत्र...