Tuesday 8 July 2008

मेरा लोकतंत्र-तेरा लोकतंत्र...

आज से एक दिन पहले टीवी पर दो चीजे एक साथ देखने को मिली। किसी चैनल पर कार्यक्रम आ रहा था अमेरिका में लोकतंत्र के विकास पर। स्पेशल रिपोर्ट था जिसमें दिखा रहा था कि कैसे अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है वहीँ एक और ख़बर थी किसी न्यूज़ चैनल पर आ रही थी अफगानिस्तान की। अमेरिकी सेना के हमले में २३ लोग मारे गए थे। अमेरिकी सेना का कहना था कि ये आतंकी थे और उन्हें कारवाई में मार गिराया गया है वही स्थानीय लोगों का कहना था की ये लोग बारात में आए थे और मरने वालों में १७ औरतें और बच्चे थें। अमेरिका ये लड़ाई अफगानिस्तान में लोकतंत्र की बहाली के लिए लड़ रहा है और ऐसी ही लड़ाई वह इराक में भी लड़ रहा है। इसी तरह की लड़ाई वह विएतनाम में लड़ चुका है और अफ्रीका के कई देशों में भी लोकतंत्र के लिए अमेरिका की लड़ाई जारी है।

जाहीर है यही वो कारण है जिसके नाम पर कभी अमेरिका के निशाने पर दक्षिण अफ्रीका तो कभी जिम्बाब्वे रहते हैं और लगातार इन देशों पर अमेरिकी प्रतिबन्ध लगते रहते हैं। इन्ही प्रतिको की रक्षा के लिए कभी अमेरिका मार्टिन लुथेर किंग के पीछे दीखता है तो कभी बापू की प्रतिमा उसके लिए लोकतंत्र का सबसे बड़ा प्रतिक बन बैठता है। अपने इसी चेहरे को दिखाने के लिए अमेरिका ने समंदर किनारे स्टैचू ऑफ़ लिबर्टी लगा रखी है। इसी के लिए अमेरिका ने इराक पर हमला किया। हजारों-लाखों लोग इसी लड़ाई के चक्कर में इराक में मारे गए। ऐसे ही लोग लगातार अफगानिस्तान में भी मारे जा रहे हैं। अभी अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होना है सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे बराक ओबामा कह रहे है की चुनाव जीतते ही वे इराक से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुला लेंगे। उनका कहना है की ये लड़ाई अमेरिकी आर्थिक हितों के लिहाज़ से नुकसानदायक है। मतलब की इराक की लडाई बंद कर दी जायेगी। फ़िर क्या होगा इराक में लोकतंत्र बहाली का। उससे अमेरिका को मतलब नहीं हैं उसे मतलब सिर्फ़ अपने लोकतंत्र से है। इराक में, अफगानिस्तान में, पाकिस्तान में लोकतंत्र की बहाली का काम वहां के लोगों का है और उन्हें ही इसे अपने चश्मे से देखना चाहिए। और अगर वे इसे देखने का काम अमेरिका को सौप्तें हैं तो उन्हें इसका नुक्सान उठाना पड़ेगा। और ऐसे ही दुनिया में जर्जर विएतनाम, इराक, अफगानिस्तान, सोमालिया और न जाने क्या-क्या बनते रहेंगे।

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