Tuesday 3 June 2008

मुफलिसी की गिरफ्त में है दुनिया की १० करोड़ आबादी!

""वह सुबह कभी होगी तो देखूँगा,
अभी तो घने अंधकार में ढूँढ रहा हूँ सघनता से
अपने हिस्से की रोशनी!!

...इटली की राजधानी रोम में इन दिनों 'हंगर सम्मिट' यानि की भूख पर बहस-मुबाहिसा चल रहा है। पुरी दुनिया के विद्वान भूख के कारणों और इसे मिटाने के उपायों पर चर्चा कर रहे हैं। दुनिया में खाद्दान संकट कितनी गंभीर है इस बात का अंदाजा संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के प्रमुख ज़ाक डियूफ़ के बयान से होता है। उन्होंने कहा की विश्व बिरादरी को भुखमरी मिटाने के लिए तुरंत कदम उठाने होंगे और इसके लिए 20 से 30 अरब डॉलर की ज़रूरत होगी। ये चिंता वाजिब भी है, जाकने साथ ही दुनिया के कई हिस्सों में भोजन के लिए हुई हिंसा का उदाहरण देते हुए कहा की इससे पहले की हालत काबू से बाहर चले जाए कदम उठाने होंगे।

विश्व मंच पर ये चिंता भी यूं ही नहीं उठाई जा रही है। हेती, फ़िलिपींस और इथियोपिया जैसे देशों में खाने के सामान के आसमान छूते दाम की वजह से दंगे भी हुए हैं। पिछले 12 महीनों में खाद्य पदार्थों के दाम में औसतन 56 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है। गेहूँ के दाम में 92 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है, चावल के दाम 96 फ़ीसदी बढ़ गए हैं। दुनिया भर में वर्ष 2005 और 2007 के बीच गेहूँ, मक्का और तिलहन फ़सलों के दाम लगभग दोगुने हो चुके हैं। विश्व खाद्य संगठन की वार्षिक अनुमान रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2017 तक गेहूँ की क़ीमतों में 60 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है और वनस्पति तेल उस समय तक लगभग 80 प्रतिशत महंगा हो सकता है। खाद्य और कृषि संगठन ने चेतावनी दी है कि अगर खाद्यान्न की पैदावार बढ़ाने और उन लोगों तक इसे पहुँचाने का इंतज़ाम नहीं किया गया तो हालात बद से बदतर हो सकते हैं। ऐसा माना जा रहा है कि इस खाद्यान्न संकट ने 10 करोड़ लोगों को भुखमरी की तरफ़ ढकेल दिया है। आंकड़ों के अनुसार इस साल ग़रीब देशों को खाद्यान्न आयात करने के लिए 40 प्रतिशत ज़्यादा खर्च करना पड़ा है। खाद्य और कृषि संगठन ने दानकर्ता देशों से माँग की है कि वो विकासशील देशों की और अधिक मदद करें ताकि किसान बीज, खाद और किसानी से जुड़ी दूसरी चीज़ों को खरीद सकें।

रोम में चल रहे इस सामेलन में भुखमरी मिटाने के लिए जिस पैसे की जरूरत बताई जा रही है, उसे जुटाना भी इतना आसान नहीं है। सवाल है की आमिर देश अप्नेलोगों को खाना खिलाने में सक्षम हैं और गरीब देश इतनी बड़ी रकम नहीं जुटा सकते। लेकिन अगर दुनिया में हथियारों की खरीद पर गौर किया जाए तो आँखे खुली रह जायेगी। यही दुनिया जो अपने भूखे लोगों को खाना खिलाने के लिए 20 से 30 अरब डॉलर जुटा पाने में असहाय दिख रही है उसी दुनिया ने वर्ष २००६ में हथियार खरीदने पर २०० अरब डॉलर खर्च किए।

ऐसा भी नहीं है की इस हालत में जल्द ही कोई बदलाव आने वाला है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि खाद्य पदार्थों की बढ़ी हुई क़ीमतें कुछ और समय तक टिकी रह सकती हैं क्योंकि विकासशील देशों से माँग बढ़ रही है और उत्पादन की लागत भी बढ़ रही है। अगर वाकई हम इस समस्या से निपटने के लिए गंभीर हैं तो हमे जहाँ अनाज की पैदावार बढानी होगी वहीं सभी तक भोजन पहुंचे इसकी भी व्यवस्था करनी पड़ेगी...

वह सुबह कभी होगी तो देखूँगा।
अभी तो घने अंधकार में ढूँढ रहा हूँ सघनता से
सबके हिस्से की पीड़ा॥""

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

ये भारत दुनियाँ के बाहर हे क्या? 10 करोड़ से अधिक मुफलिस तो यहीं होंगे मेरे भाई।

बिक्रम प्रताप सिंह said...

आलेख अच्छा है बस आंकड़े थोड़े उलझाने वाले हैं। हकीकत यह है कि इस खाद्यान्न संकट ने पहले से मौजूद करोड़ों मुफलिसों में १० करोड़ और जोड़ दिए हैं।