Wednesday 1 May 2013

उफ् ये लोकतंत्र--इधर सांपनाथ ऊधर नागनाथ

दुनिया के इस तथाकथित सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में क्या अब भी लोकतंत्र का कोई मतलब रह गया है? सत्तारूढ़ दल घोटालों पर घोटाले करता जा रहा है। अब उसे जनता, न्यायपालिका या नैतिकता का कोई डर नहीं है। विपक्ष को मुद्दे उठाने आते नहीं। सच कहें तो जनता को विपक्ष से भी कोई अच्छा काम करने की उम्मीद नहीं रह गई है। ऐसे में क्या देश के युवाओं का झुकाव किसी नए तरह के नेतृत्व के विकल्प की ओर हो सकता है? आजादी के बाद के छह से अधिक दशक से ये देश लोकतंत्र के नाम पर चुनाव, चुनावी रैलियां, भाषण, आश्वासनों के ढेर, पैसे बांटकर अपने पक्ष में वोट डलवाते आ रहे राजनीतिक दलों के पैंतरें, गरीबी हटाओं जैसे बोर करने वाले नारे सुन और देखकर बोर हो चुका है। क्या अब वक्त आ गया है इस देश में पुराने तरह की राजनीति को नकार देने की?

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