जब नारद मुनि नव वर्ष पर भारतभूमि के अपने शीतकालीन प्रवास से स्वर्गधाम वापस पहुंचे तो देवगणों का उनके पास धरती पर अपने-अपने पसंदीदा स्थलों की जानकारी लेने के लिए पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। खैर ये नारदजी के लिए कोई नई बात नहीं थी और ऐसा अवसर उनके हर भ्रमण के बाद आता था। स्वर्ग में अपने महल के अहाते में बैठकर नारद मुनि सुबह से ही हल्की-हल्की धूप का आनंद ले रहे थे। वैसे भी धरती पर हाड़ कंपकंपाती ठंढ़ और बर्फबारी से उनका मन अकुलाया हुआ था। देवगणों को अपनी ओर आते देख नारद मुनि कुछ अपने में ही खोने की भूमिका बनाने लगे और उनकी तंद्रा तभी टूटी जब उनके अनुचरों ने औपचारिक रूप से देवगणों के आने का समाचार सुनाया। उत्सुक हो देवगणों में से एक ने कहा- अरे नारद मुनि अभी भी आप पर से धरती का हैंगओवर उतरा नहीं क्या? कहिए क्या हाल है हमारी प्रिय भूमि का? कहिए धरती पर मौजूद हमारे मित्र और रिश्तेदार देवगण कैसे हैं? क्या चल रहा है आजकल वहां?
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नारद जी ने अपनी यात्रा वृतांत सुनानी शुरू कर दी, कि कैसे इस बार धरती पर चुनावों का मौसम चल रहा है और सभी नेतागण मंदिरों, मस्जिदों और गुरूद्वारों के लगातार चक्कर लगाते दिख रहे हैं और उनके साथ बड़ी संख्या में उनके पार्टी कार्यकर्त्ता भी पूजा के लिए पहुंच रहे हैं, कि किस तरह धरती पर मौजूद देवताओं तक पहुंचना मुश्किल काम हो गया है। नारद जी ने बताया कि चुनाव वाले राज्यों में मौजूद देवगणों की जिंदगी कितनी व्यस्त हो गई है, इक्का-दुक्का लोगों से ही मुलाकात संभव हो पाई। आधी रात बीतती नहीं है कि चुनावी जीत की आस लगाए भक्त गण देवताओं के द्वार पर दस्तक देने लगते हैं और ये सिलसिला आधी रात आने पर ही थमता है, कि कैसे सभी देवगण चुनावी जीत की मन्नतों की फाइलों के ढेर में उलझे हुए हैं।
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बाल भगवान गणेश जी को चेताते हुए उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया कि आप धरती पर जाकर कहीं भी दूध पीने लगते हो, आपको थोड़ा वहां दूध में मिलावट की रिपोर्टों पर भी ध्यान देना चाहिए।
भारतभूमि के केंद्र में बसे दिल्ली में एक सरकारी रिपोर्ट तक में कहा गया है वहां बिकने वाला करीब 70 फीसदी दूध मिलावटी और जहरीला है। इसलिए आप कृप्या थोड़ा सोच-समझकर और दूध की शुद्धता का पता लगाकार ही वहां दूध पिया करें।
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लोकपाल के वृतांत से उकताए देवगणों ने नारद जी को पहले ही चेता दिया था कि इस बारे में पिछले कई सीजन से आप बताते आ रहे हो, कृप्या इस बार इसकी चर्चा मत करना। इसलिए नारद जी ने इस बार धरती पर चर्चा का विषय रहे आरक्षण को ही वहां अपनी चर्चा का केंद्र बिंदू बनाने की सोच रखी थी। उन्होंने देवगणों को जब बताया कि धरती वाले सबको सामाजिक बराबरी दिलवाने के लिए इन दिनों आरक्षण नामक फार्मूले पर पिल्ल पड़े हैं। वहां की सरकारें आरक्षण के भीतर आरक्षण और उससे भी आगे बढ़कर नए-नए प्रकार के आरक्षण के विकास पर खूब ध्यान दे रहीं हैं। इसके लिए हर दल के पास विशेषज्ञों की नई-नई फौज तैयार हैं जो हर चुनाव में पार्टी द्वारा लांच करने के लिए आरक्षण के नए-नए प्रकारों के आविष्कार में दिन-रात जुटी हुई हैं, ताकि पार्टी हर बार नए वर्ग को लुभा कर अपने साथ कर सके। वैसे भी पार्टियों के लिए पिछले चुनावों में जुड़े समूहों को अपने साथ जोड़े रखना बहुत मुश्किल काम हो गया है। क्योंकि जनता की डिजायर्स(इक्छाएं) इधर काफी बढ़ गई है। चुनाव के मौसम को लोग सूरा-सुंदरी(कृप्या इसे नृत्य तक ही समझे), उपहार आदि हासिल करने के अवसर के रूप में देखने लगे हैं। नारद जी ने बताया कि कैसे एक राज्य में चुनावों की घोषणा होते ही चारो ओऱ करोड़ो-करोड़ रुप्यों के काले धन की खेप पकड़ाने लगी है। देवगणों को कौतुहल में अपनी ओर देखते हुए देख, खासकर धन के भगवान कुबेर की जिज्ञासा को समझते हुए नारद जी ने समझाना शुरू किया कि काला धन संपत्ति का ही एक रूप है, जिसकी खोज मानवों ने की है। ये एकदम फूलप्रूफ धन है, जिसका पता लगाना वहां की सरकारों के लिए मुश्किल ही नहीं असंभव सा सिद्ध हो रहा है। हालांकि, देश में क्रिकेट, फिल्म आदि जितने नए-ऩए काम हो रहे हैं उसमें इसी धन का बोलबाला है, विशेषकर चुनावों के वक्त तो पूछो ही मत. मतदाताओं को रूझाने में ये नए प्रकार का धन अमृत का काम कर रहा है। इस काले धन ने चुनावों के युग में सभी इंसान को एक समान स्थिति देकर केवल मतदाता भर बना दिया है। कोई गरीब भी है तो उसे एक मत देने का अधिकार वहां हासिल है और इस तरह वह दूसरे अन्य लोगों की बराबरी में आकर अपने हिस्से का मुर्गा और शराब हासिल कर रहा है।
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इंद्र भगवान ने नारद जी से धरती के मनोरंजन जगत के हाल-चाल के बारे में पूछा तो वे कहने लगे- कि अजी कहिए मत, शीला और मुन्नी के ठुमको से ऊब चुके लोग आजकल कोलावरी डी की धूम पर मस्त हैं। लोगों में इस गीत की लोकप्रियता को देखते हुए चुनावों में इसे खूब बजाया जा रहा है, यहां तक की सड़क पर मार-पीट को कम करने के लिए ट्रैफिक पुलिस भी इसे भजन के रूप में इस्तेमाल कर लोगों में मन की शांति को बढ़ावा देने में लगी है।
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देवगणों को धरती यात्रा के वृतांत सुनाते कब सूरज सर पर चढ़ आया नारद जी को ध्यान ही नहीं रहा। जब अनुचरों ने आकर कहा कि मुनिवर दोपहर एक बजे देवगुरू से मिलने का अप्वाइंटमेंट है तब जाकर उन्हें होश आया। देवगणों को उन्होंने अगले सत्र में फिर से पृथ्वी यात्रा से लौटने पर नए-नए विवरण सुनाने का वादा किया और जल्दी से उनसे विदा लेकर वे चल पड़े कि कहीं वे क्रोधित न हो जाएं।
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