Saturday 8 January 2011

अंधेर नगरी-चौपट राजा...!

आजादी के ६३ सालों बाद आज हमारा महान देश भारत अपने साहित्यकार भारतेंदू हरिश्चंद्र के इस उक्ति को सार्थक करने योग्य परिपक्वता हासिल कर चुका है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने बारे में हम चाहे जो भी कह लें लेकिन हमारी वास्तविकता क्या है हमे इसका पूरा आभास है। किसी भी देश के राजनीतिक नेतृत्व का काम होता है ऐसी चीजों को बढ़ावा देना जिससे देश और समाज अन्य समाजों की तुलना में टिकने योग्य बन सके और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने लायक बन सके। लेकिन हमारे यहां आज हालात ऐसा बन गया है कि जिसे जिस पद पर बैठा दिया जाये वह वहीं से दोनो हाथों से राष्ट्र की संपत्ति के संचय में जुट जाता है। अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए तो हम कुछ करते नहीं उल्टे बुनियादी चीजों से हमारा ध्यान हटाये रखने के लिए हमारे हुक्मरान हमे सुपरपावर बनाने का वहम दिखाते रहते हैं। एक तरफ जहां हमारा पड़ोसी देश चीन रोज कामयाबी की नई कहानी लिख रहा है वहीं हम रक्षा, तकनीक, हथियारो और विमान आदि सभी चीजों के लिए आज भी दूसरे देशों पर ही निर्भर हैं और उसपर भी बेशर्मी इतनी कि हर साल राजपथ पर इन उधार की चीजों की प्रदर्शनी निकालकर गर्वान्वित होते रहते हैं। हम ५०-६० किलोमीटर की रफ्तार से चलने वाली मेट्रो ट्रेन जापान से लेकर इतने खुश हो रहे हैं जैसे कोई अद्भुत अविष्कार कर डाला हो, वहीं दूसरी ओर चीन जैसा पड़ोसी दुनिया की सबसे तेज रफ्तार ट्रेन खूद के बुते बनाकर नई मिसाल कायम करता जा रहा है। एक तरफ जहां हमारे अंतरिक्ष मिशन विफल हो रहे हैं वहीं चीन चांद पर जाने की तैयारियों को मुक्कमल बनाने में जुटा हुआ है।
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जिस देश की करीब दो-तिहाई आबादी गरीबी रेखा से चीने जीवन-यापन करती हो वहां हजारों करोड़ रुप्ये फूंककर खेल-तमाशे कराये जाते हैं और हमारे हुक्मरानों को इसपर शर्म भी नहीं आती। सबसे बड़ी गलती देश की जनता की है जो इतनी सारी विसंगतियों के बावजूद राजनीतिक बिरादरी को सबक सिखाने की बजाय उनके तमाशे पर मौन धारण किये हुए है। भ्रष्ट, घोटालेबाज, दागी और अपराधी तत्वों को अपने समाज की बागडोर सौंप कर हम न जाने किस खुशहाली की उम्मीद पाले हुये हैं।
आज हमारा समाज वास्तविक रूप से अंधेर नगरी-चौपट राजा की कहावत को चरितार्थ करने में सक्षम दिख रहा है।

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