बात-बात में मीडिया को कोसने वाली जनता आज कहाँ है. जो काम उसे करना चाहिए था वह मीडिया कर रहा है. मीडिया ने साबित किया है कि जो गलत है उसे रोकने में वह एक सशक्त माध्यम बन सकता है, लेकिन साथ ही यह भी सच है कि इस काम में आखिरकार सबकुछ जनता के ऊपर ही टिकी हुई है. मीडिया के एक स्टिंग ऑपरेशन ने सेक्स स्कैंडल के आरोप में फंसे एक राज्य के गवर्नर को महज ३० घंटो के अन्दर राजभवन से बेदखल करवा दिया और राजनीतिक जमात को यह याद दिला दिया कि राजभवन की गरिमा क्या होती है. मीडिया के लगातार अभियान के कारण एक राज्य के एक रसूखदार पुलिस अधिकारी के ऊपर इन दिनों शामत आई हुई है. इन अधिकारी के ऊपर एक युवा महिला बैडमिन्टन खिलाड़ी के साथ छेड़-छाड़ और उसे आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है. यह घटना १९ साल पुरानी है, मीडिया ने यहाँ देश के न्याय व्यवस्था पर भी सवाल उठाया है कि आम आदमी के लिए न्याय का पैमाना क्या है और रसूखदार लोग किस तरह से प्रशासन का इस्तेमाल कर न्याय प्रक्रिया को बाधित करते हैं और साथ ही यह सवाल भी कि न्याय व्यवस्था इसे रोकने के लिए क्या कर रही है? मीडिया के अभियान के बाद आज केंद्र से लेकर उस राज्य तक की सरकार इस मामले में जागी है और तमाम महिला संगठन भी न्याय दिलाने के लिए आगे आये हैं.
कहते हैं भारत विविधताओं से भरा देश है, विविध लोग...विविध नज़ारे और विविध प्रकार की बातें.....हर बार जिंदगी का नया रूप और नई तस्वीर....लेकिन सब कुछ हमारी अपनी जिंदगी का हिस्सा...इसलिए बिल्कुल बिंदास...
Sunday, 27 December 2009
अंधेर नगरी-चौपट राजा!
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सवाल यहाँ और भी कई हैं, जिसमे दोष आखिरकार जनता के ऊपर ही आता है. इसी देश की प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में महज २-३ सालों में एक मुख्यमंत्री हजारो करोड़ का गबन कर जाता है, न्याय व्यवस्था उसके साथ क्या करती है ये तो सवाल हमारे सामने मौजूद है हीं, लेकिन जनता ने ऐसे जनप्रतिनिधियों के साथ क्या किया ये भी सोचने वाली बात है. इस घटना के उजागर होने के कुछ महीनों के अन्दर ही जनता उस शख्स की पत्नी को चुनकर विधानसभा में भेज देती है. एक ऐसी जगह जहाँ जाकर उसे जनता के लिए नियम-कानून और नीतियाँ बनाना है. जब जनता खुद ही ऐसे लोगों के हाथों में अपनी तक़दीर सौंप रही है तो फिर किस अधिकार से देश की जनता राजनीतिक जमात पर ये आरोप लगाती है कि देश की आजादी के ६ दशकों बाद भी समुचित विकास नहीं हुआ और आज भी बेरोजगारी, गरीबी और अशिक्षा जैसी समस्याएं देश में मौजूद है. सच कहा जाये तो प्रशासन देश की जनता के विचारों और उसकी दृष्टि का आइना होती है और हम जैसे हैं वैसा ही हमें राजनीतक नेतृत्व मिला है. अगर हम इससे खुश हैं तो फिर कोई और तो आयेगा नहीं हमें बचाने...हम यूहीं पिसते रहेंगे...महंगाई और बेरोजगारी जैसी समस्याओं की चक्की में और राजनीतिक जमात हर साल लोकतंत्र और चुनाव के नाम पर हमारे सामने ही करोडो-अरबो रूपये उड़ाता रहेगा और उसमें से कुछ नोट हमारे सामने भी फेंक दिया करेगा हर बार- एक वोटर होने के नाते...शायद इसी वक्त के लिए कहा गया है--"अंधेर नगरी-चौपट राजा!"
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4 comments:
यह एक भयानक षड्यंत्र है -राजभवन में भी ख़ुफ़िया कैमरे और और स्टेज्द शो ? और बलि का बकरा बनते तिवारी -ये बेहद खतरनाक संकेत हैं ! भाड़ में जाय तिवारी मगर राजभवन की सुरक्षा में भयानक चूक ,शिथिलता पर क्या कार्यवाही होनी चाहिए वक्त इसका भी है !
और कोई इस तरह का यौनीय चारा लगाकर किसी भी को भी फांसा जा सकता है !क्या मानवीय (जैवीय ) भावनाओं को दुलराते हुए ऐसे स्टिंग आपरेशन किसी भी दृश्य से उचित हैं ?
इन पर भी विचारिये श्रीमन!
संदीप मीडिया अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभा रहा है.. लेकिन अरविंद जी का सवाल भी ठीक है... राजभवन में स्टिंग ऑपरेशन हो गया और सुरक्षा एजेंसियां सोती रहीं... कल को ये काम देश में और कहीं भी हो सकता है...
अर्विन्द मिश्रा जी से सहमत हूँ।
well said...
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