Wednesday 23 September 2009

मिलावट का ये जमाना...आम आदमी और टीवी!

लोकतंत्र में सबको अपनी बात रखने का अधिकार है॥टीवी वालों को भी। सो उन्हें जो मन में आ रहा है दिखा रहे हैं ...हमें भी अधिकार है अपनी बात कहने का इसलिए कह रहा हूँ. यहाँ बस स्वस्थ लोकतान्त्रिक परम्परा काम कर रही है और कुछ नहीं. यूँ कहें तो हम टीवी की बुराई भी नहीं कर सकते क्यूंकि उसे देखे बिना काम भी नहीं चलता.. मेरे जैसे न जाने कितने लोगों के लिए टीवी की पत्रकारिता ने उम्दा काम किया है. मिलावटी तेल, घी, ब्रेड छुडाने के बाद जब नवरात्र शुरू होने वाला था कि अचानक एक दिन रिमोट से फिर टीवी को वो चैनल लग गया. फिर क्या था घर में इलाइचिदाना और बताशा आना भी बंद हो गया. इन चीजों के बनने की मिलावटी और करुण कहानी देखकर घर में सीधा फरमान जारी हो गया कि आज के बाद ये चीजे नहीं खरीद कर आएँगी...इतना ही नहीं पूजा के सीजन में मिलावटी खोये की कहानी देखकर मिठाई की खरीददारी भी १ महीने के लिए रोक दी गयी. अब रोजाना घर में पूजा के बाद मिठाई खाने की वो पुरानी यादें मन में ही बस के रह जायेगी. बचपन में घर में जब भी पूजा होती थी उसके बाद प्रसाद के रूप में हाथों में इलाईचिदाने के कुछ दाने डाल दिए जाते थे..वो चंद दाने इतने मूल्यवान थे कि जल्दी ख़त्म न हो जाये इसके लिए कई घंटों तक एक-एक दाने मुंह में डाल कर संभालकर रखते थे ताकि उसका स्वाद लम्बे समय तक मुंह में बना रहे. लेकिन अब वो स्वाद नहीं मिलेगा. नए बच्चे तो उसका स्वाद भी नहीं जान पाएंगे।
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ये कहानी केवल मेरी नहीं है इस मिलावटी युग में हर इन्सान की यहीं करुण कहानी है. दिनभर ऑफिस में काम करके थका हारा इन्सान जब हाथों में चाय की प्याली लेकर टीवी के सामने बैठता है और फिर टीवी पर दूध में मिलावट की दिल दहला देने वाली कहानी देखकर हाथ में रखे चाय पर बार-बार उसकी नजर जाती है और वो सोचता है इसमें पड़ी दूध भी तो मिलावटी होगी...और इस तरह चाय कब ठंडी हो जाती है पता ही नहीं चलता. नाश्ते में, खाने में और न जाने कब-कब उसे मिलावट की ये कहानी कुछ भी खाने से रोक देती है. अगर ऐसे ही चलता रहा तो इन्सान क्या खायेगा और क्या छोडेगा ये तय करना उसके लिए काफी मुश्किल हो जायेगा. इस दुविधा की घडी में टीवी वाले रोजाना उसे नए-नए मिलावटी उत्पाद दिखाकर और भी मुश्किल में डाल रहे हैं. अब भगवान ही भला करे आम आदमी का...जहाँ सब कुछ धीरे-धीरे मिलावटी होता जा रहा है.

1 comment:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

यही हाल रहा तो कुछ दिन बाद बिन खाए जीने की आदत डालनी पड़ेगी.