Friday, 18 September 2009

इकोनामी क्लास और भेड़-बकरी बनी जनता...?

इलीट क्लास से आने वाले हमारे एक मंत्री जी ने जब से विमान के इकोनोमी क्लास को भेड़-बकरी क्लास की संज्ञा दी है तब से हर जगह लोगों ने हाय-तौबा मचा रखी है। लोगों ने ऐसी प्रतिक्रिया दी है जैसे उन्होंने कोई ऐतिहासिक गलती कर दिया है, और पहली बार उन्हें भेड़-बकरी समझा गया है. जबकि ऐसा नहीं है. रोजाना की जिंदगी में उन्हें हमेशा यही संज्ञा मिलती है और देश में इससे ज्यादा उनकी कोई औकात भी नहीं है. ऐसे में अगर इलीट क्लास से आने वाले हमारे मंत्री महोदय ने उन्हें भेड़-बकरी समझ ही लिया तो इसे उस वर्ग की मानसिकता के रूप में देखना चाहिए. मतलब हमारे देश का उच्च वर्ग अपने से नीचे वाले वर्ग को कैसे देखता है इसे उस रूप में देखा जाना चाहिए. ये भेदभाव केवल उसी स्तर पर नहीं है हमारे यहाँ न्यायपालिका द्वारा इन्सान को देखने का नजरिया भी अलग-अलग है. तभी तो कई लोगों को अपनी गाड़ी से कुचलने वाले एक एलिट क्लास के नवयुवक को इसलिए जमानत पर छोड़ दिया जाता है कि उसके दादा देश के बहुत बड़े अधिकारी रह चुके हैं और उनकी इक्षा है उसे देखने की...इस दौरान इस तथ्य को भी नजरंदाज कर दिया जाता है कि उसी नैजवान के पिता पर देश की रक्षा सौदे में दलाली का मुकदमा चल रहा है. तभी तो हत्या के आरोप में जेल में बंद एक प्रसिद्ध आईपीएस अधिकारी को इसलिए जमानत दे दी जाती है ताकि वो अपनी बेटी की शादी में शरीक हो सके...क्या न्याय की ऐसी उदारता देश के आम आदमी के लिए देखने को मिल सकती है?
दूसरी बात ये भी कि इकोनोमी क्लास में चलने वाले लोग अपने से निम्न आयवर्ग के लोगों को किस रूप में देखते है. आखिर कौन चलता है इकोनोमी क्लास में. २५ रूपये में महीने भर का रेल पास जुगाड़ होने की ख़ुशी में झुमने वाले इस देश की कितनी आबादी प्लेन के इकोनोमी क्लास में चलने के काबिल है. बसों और रेल में ठूस-ठूसकर यात्रा करने वाली हमारी जनता को मंत्री महोदय के मुंह से भेड़-बकरी शब्द सुनना इसलिए भी अच्छा नहीं लगा क्योंकि जनता को मालूम है कि अगर हमारे मंत्रीजी आज एलिट हैं तो वो उसी की बदौलत. आज हमारे देश की नेता बिरादरी बिजनेस क्लास से नीचे उतर कर इकोनोमी क्लास में चलने में दिक्कत महसूस करने की आदत डाल चुकी है तो उसकी जिम्मेदार यही जनता है...वरना अगर जनता ने अपने नेता को ये बता कर रखा होता कि आपकी तक़दीर उतनी ही है जितना आप अपनी जनता को खुशहाल बना सकते हो और अगर आप ऐसा नहीं कर सकते तो फिर आपके लिए व्यवस्था में कोई जगह नहीं है...अगर जनता अपने नेतृत्व को ये बताने में सक्षम होती तो फिर किसी की हिम्मत नहीं होती जनता को भेड़-बकरी समझने की...

1 comment:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

सही कहते हैं, अब सच बोलने का ज़माना ही नहीं रहा.