Thursday 16 October 2008

इंडिया शाइनिंग और चमक-दमक की निकली हवा!

पिछले २ दशको से देश को चमक-दमक का जो सपना दिखाया जा रहा था उसे आर्थिक मंदी ने धो डाला है। पहले तो इस मंदी ने अमेरिका और अन्य दमकते चेहरे वाले आर्थव्यवस्थाओं की चमक पोंछी उसके बाद अब तीसरी दुनिया के देश निशाने पर हैं। आखिरी समय तक हमारे देश के नीति-निर्माता बार-बार यही दुहराते रहे की भारत में कोई आर्थिक मंदी नहीं है और हम इसके प्रभाव से अछूते रहेंगे. लेकिन अब सच्चाई सबके सामने है. सीआरआर कम होकर ९ फीसदी से ६.५० फीसदी तक आ गया है, बैंकिंग सेक्टर के लिए सरकार ने 25,००० करोड़ की बेलआउट पैकेज की घोषणा की है. कल तक सफलता की कुलान्छे भरने वाली कंपनियों ने छंटनी शुरू कर दी है. जेट एयरवेज ने २,००० कर्मचारियों को निकालने का फरमान जारी कर दिया, टीसीएस, क्वार्क, रिलायंस रिटेल जैसी चमकती-दमकती कंपनियां भी पीछे नहीं हैं. यहाँ तक कि एयर इंडिया ने भी छंटनी की जगह १५,000 कर्मचारियों के लिए बिना वेतन की छुट्टी जैसी योजना लॉन्च कर दी है...वगैरह...वगैरह...

हमारी राजनितिक बिरादरी के लिए ये चिंता की बात नहीं है उनके लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात है इस मंदी की मार चुनावी मौसम आने से पहले आ गई. कुछ इससे खुश हो रहे हैं की चलो बैठे-बिठाए एक मुद्दा हाथ लग गया. मंदी की मार से भारत भी प्रभावित होगा इस बात को सरकार ने आखिरी समय तक दबाये रखा। लेकिन ये कब तक सम्भव था. घाटा बढ़ता देख कंपनियों ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया. जेट ने मुनाफे के लिए किंगफिशर से हाथ मिला लिया और अपने २,००० कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। यानी कल तक जो लोग जेट जैसी कंपनी में काम कर रहे थे आज वो बिना किसी गलती के सड़क पर खड़े कर दिए गए. उनसे किसी को सहानुभूति भी नहीं है. सरकार ने कह दिया कि ये कंपनी का अंदरूनी फैसला है और सरकार इसमें हस्तछेप नहीं कर सकती. हज, कैलाश मानसरोवर जैसी धार्मिक यात्राओं के लिए सरकार करोड़ों-अरबो रुपया बाँट सकती है, लेकिन बात-बात पर मुआवजा बांटने वाली यही सरकार तब कोई बेलआउट पैकेज मंजूर नहीं कर सकती जब देश के पढ़े-लिखे लोग अपनी नौकरियां खो रहे हों।

ये देश की बड़ी कंपनियों के फैसले की बात है जहाँ हजारों युवा काम करते हैं. ये बड़े-बड़े शिक्षण संस्थानों की उपज हैं और काफ़ी पैसा और मेहनत के बाद अपना कैरीअर बनाया है. इन सबके बावजूद ये आज सड़क पर हैं. ये हैं हमारी चमक-दमक वाली आर्थव्यवस्था की सच्चाई. और इसपर सरकार का जवाब है कि ये कंपनियों का अंदरूनी मसला है. जनता में इस फैसले पर कोई उबाल नहीं दिख रहा है. इतने बड़े फैसले पर कोई बड़ा विरोध न हो पाना इस बात का संकेत है कि देश का युवा वर्ग संगठित नहीं है और उसमें आन्दोलन करने की मानसिकता मजबूत नही है। यही कारण है की पूंजीवादी तबका बिना किसी झिझक के इतना बड़ा फ़ैसला ले लेता है और उसका कोई प्रबल विरोध तक खड़ा नहीं होता. राजनीती में युवा वर्ग और उसके मसले, उसकी समस्यायें उतनी प्रभावशाली नहीं रही, इसलिए कोई राजनीतिक दल उसके लिए खड़ा नहीं हो रहा है. और अपनी पढ़ाई-लिखी पूरी कर नौकरी कर रहा युवा अपनी लड़ाई में अकेले है. पिछले २ दशको में राजनीति के अन्दर आई हास का ये प्रत्यक्ष प्रमाण है।

शायद यहीं से वर्ग संघर्ष की लडाई शुरू होती है. जो फैसले ले रहा है वो है पूंजीवादी तबका और जो सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया जा रहा है वो है कामगार तबका. अबतक येही कामगार तबका देश में पूँजीवाद का सबसे प्रबल समर्थक रहा है. और ख़ुद को देश के अन्य तबको से अलग मानता रहा है. इस तबके को हमेशा से ये भरोसा रहा है की पूंजीवादी तबके का दामन थामकर वो आगे बढ़ता रहेगा और बाकी के देश से उसको कोई मतलब नहीं है. यही कारण है की आज जब इस तबके पर संकट आया है तो समाज में इसे लेकर कोई हलचल नहीं है. जबकि ये भी एक सच्चाई है की ये तबका भी इसी समाज से निकला है और अब ख़ुद को इससे अलग मानने लगा था. जबतक इस समाज में एकता नहीं आएगी तब-तक न तो राजनीतिक बिरादरी इसकी समस्याओं को लेकर संजीदा हो पायेगी और न ही कार्पोरेट जगत इसे लेकर दबाव में आ सकेगा. रूस, चीन और अन्य देशों में २०वि शताब्दी में हुई साम्यवादी क्रांति इसी अति की प्रतिक्रिया थी. और आज जब पूँजी वाद फ़िर शिखर पर आकर अपने रंग दिखा रहे तब इसी तरह के बुलबुले की जरुरत दिख रही है.

1 comment:

Manjit Thakur said...

गुरुजी ये मंदी का असर है, कल तक तो लोग िसी मनमोहिनी अर्थव्यवस्था के गुण गाते नहीं थकते थे। लोग भी न बहुत कृतघ्न हैं। बहरहाल, विकास को जब तक गांवों तक नहीं विस्तारित किया जाएगा और उसमें छो‍टे उद्योगों का विकास किया जाएगा, ऐसी मंदी की मान से लोग पीडित होते रहेंगे। दूसरी बात, विकास को इस तरह किया जाए कि वह शहरों के साथ गांव को भी आत्मनिर्भर बना दे। निर्यात आधारित इकॉनमी में ऐसा ही होगी। टिकाऊ विकास यानी सस्टेंनेबल डिवेलपमेंट एक अच्छा और अनिवार्य आवश्यकता है।