Sunday 8 June 2008

ऐसी किफायत भला किस काम की...

अखबार में एक ख़बर छपी थी- पेट्रो उत्पादों की बढ़ती कीमतों को देखते हुए प्रधानमंत्रीजी की अपील पर कई मंत्रियों ने विदेश यात्रा रद्द कर दी। मंत्री महानुभावों का ये फैसला पेट्रोल कीमतों में वृद्धि के २ दिन बाद और प्रधान मंत्री की उस अपील के एक दिन बाद आया है जिसमे उन्होंने सभी मंत्रालयों से अपनी फिजूलखर्ची पर lagaam लगाने को कहा था। कई मंत्री विदेश जाने वाले थे और उन्होंने अपनी यात्रा रद्द कर दी। इसका मतलब ये कतई ये नहीं था की समुद्र पार करने के पाप से हमारे मंत्री महोदय लोग डर गए। इस डर को तो हम लोग सदियों पहले पीछे छोड़ आए हैं। कोई भी फिजूलखर्ची के पाप का भागीदार नहीं बनना चाहता।

केन्द्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री को एक सप्ताह के दौरे पर अमेरिका जाना था। वहाँ सैन फ्रांसिस्को और लास अन्जिलिस में विश्व कुचिपुरी नृत्य महोत्सव और भारतीय मूल के फिजिशियनों के अमेरिकी संघ के समारोह में शिरकत करनी थी। मंत्री महोदय ने अपनी ये यात्रा देश के लिए पैसा बचाने के लिए रद्द कर दी। यात्रा टालने वाला दूसरा मंत्रालय है जहाजरानी एवं सड़क परिवहन मंत्रालय। मंत्री महोदय को अगले हफ्ते एक प्रतिनिधिमंडल के साथ फिनलैंड जाना था जहाँ परिवहन सहयोग के लिए समझौते पर haस्ताक्षर होने थे, फिजूलखर्ची रोकने के नाम पर ये यात्रा भी टाल दी गई।

देश हित के अपनी फिजूलखर्ची न्योछावर करने करने वाला तीसरा मंत्रालय है ख़ुद पेट्रोलियम मंत्रालय। पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवदा को २ दिन की टोकियो यात्रा पर जाना था जहाँ जी-८ मिनिस्त्रिअल मीटिंग में हिस्सा लेना था। उनके साथ उनके अधिकारियों का एक बड़ा दल भी जा रहा है। प्रधानमंत्री जी की अपील के बाद देवरा द्रवित हुए और अपनी यात्रा रद्द कर दी। राज्यमंत्री दिन्षा पटेल को देश का प्रतिनिधित्व करने को कहा गया। लेकिन देशभक्ति की बात उनके जेहन में भी समा गई थी और उन्होंने भी प्रधानमंत्रीजी की अपील का अनुसरण करते है विदेश यात्रा पर जाने से इनकार कर दिया। अब इस दल का नेत्रितव निदेशक स्तर के अधिकारी करेंगे।

दुनिया में बहुत सारे देश हैं लेकिन मितव्ययिता के लिए इतना बड़ा कदम शायद ही किसी और देश ने उठाया हो। अब जाकर समझ में आ रहा है की भारत को देशभक्तों का देश ऐसे ही नहीं कहा जाता। इन उदाहरणों से prerna लेकर अब देश के तमाम मंत्रालय अपने विदेश दौरे और शायद अपने घरेलु दौरों पर लगाम लगायेंगे। आगे चलकर सभी मंत्रालय अपने काम बंद कर फिजूलखर्ची रोकेंगे। any देशों के लिए भी महंगाई से लड़ने के लिए एक अचूक हथियार साबित होगा। हो सकता है रेल मंत्रालय की कहानी की तरह मितव्ययिता की ये कहानी भी मशहूर हो जाए। और तमाम बिजनेस स्कूल के छात्र प्रबंधन के इस गुर को सिखने के लिए भारत की ओर दौड़ लगाने लगें।...

2 comments:

Suresh Gupta said...

किफायत कुछ न कुछ काम तो जरूर आती है. हवाई यात्रा रद्द हुई, अखवारों में छप गया, अब अन्दर की बात कौन जाने? कृशन चंदर की एक कहानी थी जिस में वन मंत्री ने किफायत की थी बिल्ली को नौकरी से निकाल कर. वन विभाग ने यह बिल्ली पाली थी फाइलों को चूहों से बचाने के लिए और उसे पगार मिलती थी दो कटोरी दूध.

हम जितना पेट्रोल साल भर कार चलाकर खर्च नहीं करते उस से ज्यादा मनमोहन जी अपने एक लोकल ट्रिप में फूँक देते हैं. लेकिन नाक के नीचे किसे दिखाई देता है? उपदेश तो दूसरों को देने के लिए होते हैं.

sushant jha said...

बढ़िया...