" ९ अगस्त को लखनऊ में बसपा की राष्ट्रिय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी सुप्रीमो मायावती ने सबको चौंका दिया. पार्टी सुप्रीमो घोषणा कर दी कि उन्होंने बसपा का उतराधिकारी खोज निकाला है. वहा उपस्थित सभी लोग हैरानी से इधर-उधर देखने लगें. उन्हें उम्मीद थी कि वो वारिश सुप्रीमो के इर्द-गिर्द ही कही होगा. लोगों कि नजरें सुप्रीमो पद के उस दावेदार को ढूंढने लगी. लेकिन तभी सुप्रीमो के खुलासे ने सबको चौका दिया. उन्होंने ऐलान किया कि अपने वारिश का नाम उन्होंने बंद लिफाफे में दो गणमान्य लोगो को सौप दिया है जो उस समय लिफाफा खोलकर घोषणा करेंगे जब मैं नहीं रहूंगी. वहां मौजूद सभी लोगों की निगाहें उस दावेदार को ढूंढने लगी की कौन होगा और कैसा होगा वो. लोगों की बेकरारी के जवाब में सुप्रीमो ने बस इतना बताया- वो एक जाती विशेष का है और मेरी उम्र से १८-२० साल छोटा है. सबकी निगाहें दौड़ने लगी लेकिन ऐसा कोई नहीं दिखा और राज-राज ही रह गया. "
वैसे तो देखने में ये बिल्कुल फिल्मी कहानी जैसी लगती है. ठीक उस फ़िल्म की कहानी की तरह जिसमे डॉन या सुप्रीमो नाम का आदमी सबसे बीच में और ऊपर की ओर बने सिहासन पर विराजमान होता है और उसके दरबार में लगे बाकी कुर्सियों पर बाकी माफिया लोग आसन लगाये होते हैं. बात-बात में अचानक सुप्रीमो का उतराधिकारी बनने के लिए उसके दो शागिर्द आपस में उलझ जाते है और ऐसे में गुस्से से आगबबूला हो सुप्रीमो खड़ा होता है और घोषणा करता है कि उसने अपना उतराधिकारी चुन लिया है. ऐसे सीन दर्शकों को बहुत पसंद आते हैं. लेकिन लखनऊ वाले सीन में ऐसा बिल्कुल नहीं था. वहां लोगों कि पसंद कोई मायने नहीं रखती थी. ये भारत का लोकतंत्र है और यहाँ राजनीतिक वारिश अक्सर घोषित होते हैं न कि चुने जाते हैं.
हमारे यहाँ राजतन्त्र से लोकतंत्र में व्यवस्था तो परिवर्तित हो गई लेकिन उअतार्धिकारी चुनने का तरीका नहीं बदल सका. यही कारण है कि लगभग सभी दल आज भी पारिवारिक प्रतिबद्धता इर्द-गिर्द अपनी राजनीति चमकाते रहे हैं. इससे आगे जब छोटे और छेत्रिय दलों का दौर आया तब तो पार्टियाँ अधिकांश व्यक्तिगत रूप से बनने लगी. अगर आप पार्टी के एकाधिकार वाले परिवार के प्रति वफादार है तो ठीक वरना अपनी अलग पार्टी बना सकते हैं. स्थिति ऐसी बनती जा रही है कि कल को हर नेता का एक अपना दल होगा और वे केवल सरकार बनाने और गिराने के वक्त किसी गठबंधन के अन्दर होंगे. ये पार्टी भी उनकी होगी और उसका वारिश भी उनके अपने घर से होगा. बनाने कि ये प्रक्रिया अभी तक राज्य स्तर और छेत्र स्तर तक ही सीमित था लेकिन अब लग रहा है कि पार्टियाँ जिला और पंचायत लेवल पर भी बनने लगेंगी और तब सारे लोग अपने-अपने वारिश का नाम ख़ुद तय कर सकेंगे. तभी सही मायनों में हमारा देश लोकतांत्रिक कहला पायेगी.
3 comments:
वो मायावती है वो सब कुछ कर सकती है। लेकिन चुनाव सर पर है ये सगुफा तो वोटरों को लुभाने के लिए दिया गया है। साथ ही गोटी भी चमाका दी है कि वो दलित ही है। और ये क्या बाबू जनता है ये सब जानती है जब जमानत जब्त करवाती है तो अच्छे-अच्छे नेताओं को नानी याद आजाती है।
मायावती की माया है.
अच्छा लिखा
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