Monday 26 November 2007

कोई तो बताये तस्लीमा की गलती क्या है?

दो मामले आजकल मीडिया में खूब चर्चा का विषय बने हुए हैं। एक तसलीमा नसरीन और दूसरी सउदी अरब की वो लड़की जिसके साथ बलात्कार हुआ और अदालत ने ये कहते हुए उसे २०० कोड़े मारने कि सजा सुना दी कि उस समय वो कार में ऐसे आदमी के साथ बैठी थी जो उसका रिश्तेदार नहीं था। ये दोनो खबरें एक ही समाज से जुडी हुई है। बस फर्क ये है कि एक समाज के ऊपर एक लोकतांत्रिक व्यवस्था का दबाव(?) है और दूसरा २१ वी सदी में भी बेधरक अपने मध्यकालीन कानून लागू कर रहा है.

पहले आते हैं तस्लीमा वाली खबर पर। तस्लीमा का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि उसकी लेखनी इस्लाम के लिए खतरनाक है। लज्जा नमक जिस किताब का जिक्र हो रहा है उसमे तस्लीमा ने इस्लामी समाज में परदे के नीचे दबा दी गयी बातों की तह उघारने का प्रयास किया गया है। अगर समाज में हो रही किसी गलत बात को कोई सामने ला रहा है तो वो गलत कहाँ से है। ये कोई नयी बात नहीं है जब भी समाज में व्याप्त किसी बुराई के खिलाफ कलम चली है तब उसे रोकने का प्रयास हुआ है। चाहे १६वि समाज का यूरोप रहा हो, या भारत का हिन्दू समाज ही क्यों ना रहा हो, सभी समाजो ने अपनी बुराइयों को चर्चा से बचाने का हमेशा प्रयास किया है। जो लोग तलिमा के किताब का विरोध कर रहें हैं वे लोग ही मकबूल फ़िदा हुसैन कि पेंटिंग जलाने वालों की आलोचना करते हैं। जबकि हुसैन कि पेंटिंग में बुराइयों को सामने लाने का कोई प्रयास न होकर ओछी बाते ज्यादा होती हैं। तस्लीमा का मामला भारत के बुद्धिजीवी तबके के लिए अब अस्तित्व कि लड़ाई है। अगर आज ये कट्टरपंथी जीतते हैं तो ये कल हर काम पर पाबन्दी के लिए यही तरीका अपनाएंगे । सभी धर्मों के प्रगतिवादी लोगों को आगे आकर इस मामले पर तस्लीमा का साथ देना चाहिए। कट्टरवाद किसी भी धर्मं में हो उसका विरोध होना चाहिऐ।

अब आते हैं दूसरी खबर पर। सउदी अरब की एक खबर आजकल पश्चिमी मीडिया में खूब छाई हुई है। बलात्कार की शिकार एक लड़की ko वहाँ कि अदालत ने 200 कोड़े मारने के आदेश दिए हैं। अब ज़रा आप भी सुनिए क्या कारण है इस आदेश का। लड़की अपने किसी साथी के साथ कार में कही जा रही थी, रास्ते में ७ लोगों ने कार रुकवाकर उसके साथ बलात्कार किया। अदालत ने बलात्कारियों के साथ-साथ लड़की को भी सजा सुना दी। अदालत का कहना था लड़की एक ऐसे आदमी के साथ कार में घूम रही थी जो उसका रिश्तेदार नहीं था। यही उसके सजा का कारण है।

Friday 23 November 2007

"'अब से ५ मिनट बाद होंगे कई धमाके'"

उत्तर प्रदेश के कई शहरों में बम धमाके हुए। इन्हें अंजाम देने वाले आतंकियों कि हिम्मत देखिए । २३ नवम्बर को कई न्यूज़ चैनलों को ईमेल मिले--- अब से ५ मिनट बाद उत्तर प्रदेश के कई शहरों में धमाके होंगे। ठीक सवा एक बजे वाराणसी, लखनऊ और फैजाबाद में कई जगह धमाके हुए। धमाके कोर्ट परिसर के बाहर हुए। इन तीनों अदालतों में आतंकवादियों के मामलों कि सुनवाई चल रही थी। १४ लोग मारे गए। सरकार ने अपना रूटीन पूरा किया- धमाकों की निंदा की, मुआवजे कि घोषणा की, जांच के आदेश दिए और तमाम शहरों में रेड अलर्ट जारी कर दिया। अब आगे क्या होगा?

पिछले सप्ताह लखनऊ में तीन आतंकी पकडे गए थे, उसके बाद भी इस हमले का कोई सुराग हमारी गुप्तचर एजेंसियों के हाथ नहीं लग सका। हालांकि इस तरह के हमलों पर लगाम लगा पाना किसी के लिए भी असंभव होगा। हालांकि हमलों में मारे गए लोगों के परिजनों को ये बात समझाया नहीं जा सकता। क्यूंकि उन लोगों ने बिना कारण के अपने लोगों को खोया है। हालांकि लोग अगर इसे किसी समुदाय विशेष से जोड़कर देखने लगें तो इससे सबसे ज्यादा प्रभावित निर्दोष लोगों को होना पडेगा। और यही तो ये आतंकी चाहते हैं । लेकिन अब समय आ गया है कि इस मसले पर कुछ तो होना चाहिए। कोई तो कोई हल तो जरूर निकालना होगा। वरना लोग घर से बाहर निकलने में भी हजार बार सोचने लगेंगे। कि पता नहीं वो वापस भी लौटेंगे भी या नहीं.

क्यों कट्टरपंथियों के निशाने हैं तस्लीमा

२१ नवम्बर कि सुबह कोलकाता की सड़कों par पत्थरबाजी हो rahi थी। अल इंडिया मईनोरिटी फोरम ने ३ घंटे का बंद बुलाया था। अचानक कुछ लोगों ने पुलिस वालों पर बोतलों, पत्थरों और तलवारों से हमला कर दिया। ४० से ज्यादा लोग घायल हुए। कई इलाकों में कर्फू लगाना पडा। बंद करने वाले तस्लीमा नसरीन कि वीजा अवधी बढाये जाने, नंदीग्राम में मुसलामानों की हत्या और रिज्वानुर मामले में कोलकाता पुलिस कि भूमिका का विरोध कर रहे थे। जाहीर था कि बहुसंख्यक जनता भी सड़क पर उतरती, किसी भी समाज में कोई भी बहुसंख्यक समुदाय किसी कि गुंडागर्दी बर्दास्त नहीं कर सकता। लोग सड़कों पर उतरे और कोलकाता में दंगा-फसाद शुरू हो गया।

अब आते हैं तस्लीमा के मामले पर। भारत में निर्वासन में रह रहीं विवादास्पद बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को पश्चिम बंगाल से हटाकर राजस्थान ले जाया गया है। गुरूवार की सुबह केंद्र सरकार के दो वरिष्ठ अधिकारियों ने कोलकाता में तस्लीमा नसरीन से मुलाक़ात की और उनसे कहा कि कोलकाता में हुई हिंसा के बाद सुरक्षा की दृष्टि से उनका पश्चिम बंगाल में रहना ठीक नहीं है।

वे पहले कोलकाता छोड़ने को तैयार नहीं थीं लेकिन बाद में जब सुरक्षा की चिंताओं के बारे में उन्हें अवगत कराया गया तो वे भारत में कहीं और जाने को तैयार हो वे जयपुर पहुँच चुकी हैं और उनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त प्रबंध किए गए हैं, उन्हें वाई श्रेणी की सुरक्षा दी जाएगी.
तस्लीमा नसरीन का वीज़ा अगले वर्ष मार्च महीने तक वैध है और वे तब तक भारत में रह सकती हैं लेकिन उसके बाद उनके वीज़ा का नवीनीकरण होगा या नहीं, इस पर प्रश्नचिन्ह बना हुआ है।

विवाद कोलकाता में स्थिति बुधवार को तब बिगड़नी शुरू हो गई थी जब तस्लीमा नसरीन की वीज़ा अवधि बढ़ाए जाने के विरोध में प्रदर्शनकारी उग्र हो गए।
कई सार्वजनिक वाहनों को आग लगा दी गई और पुलिस के साथ कुछ स्थानों पर झड़पें भी हुई।

स्थिति बिगड़ती देख राज्य सरकार को कोलकाता के संवेदनशील इलाक़ों में सेना तैनात करने का आदेश देना पड़ा। माइनॉरिटी फ़ोरम के लोग बांग्लादेश की लेखिका तस्लीमा नसरीन को भारत से तुरंत बाहर निकाले जाने की माँग कर रहे हैं।

लेफ्ट की सरकार ने तस्लीमा मामले पर विरोध को जिस तरह से तवज्जो दी है वही इस विवाद कि जड़ है।। तस्लीमा के लेखन से कट्टरपंथी लोगों को अपनी सच्चाई सामने आने कभी रहता है। इस कारन वे अबतक तस्लीमा कि लेखनी को इस्लामी समाज के लिए खतरा बताते आये हैं. अब जरुरी है कि भारत का बुद्धिजीवी तबका तस्लीमा के पक्ष में खुलकर सामने आये और तस्लीमा का यहाँ रहना सुनिश्चित कराये।

Wednesday 21 November 2007

देवेगौडा ने लोकतंत्र को उसकी औकात बताई है

देवेगौडा और कुमारस्वामी की जोड़ी ने कर्णाटक के पिच पर जमकर बल्लेबाजी कि है। इस जोड़ी ने लोकतंत्र के नाम पर लंबे-लंबे भाषण देने वाले लोगों को उनकी औकात बता दी है। बाप-बेटे कि इस जोड़ी ने लोकतंत्र को ठीक उसी तरह उसकी औकाद बता दी है जैसे धोनी और युवराज कि अगुवाई में भारत कि युवा टीम ने २०-२० क्रिकेट को उसकी औकाद बता दी थी। जेदिएस ने पहले कांग्रेस के साथ सरकार बनाई फिर भाजपा से सत्ता बाँट लिया। कहा पहले २० माह हम सरकार चलाएंगे फिर अगले २० माह आप चलाना । अपने तक तो ठीक लेकिन जब भाजपा कि बारी आई तो कहा नही हम एक सांप्रदायिक पार्टी को सत्ता नहीं सौप सकते।

राज्य में केन्द्र ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया। अचानक एक दिन कुमारस्वामी ने कहा कि हम भाजपा को बिना शर्त समर्थन देने जा रहे हैं। सब चौंके।। लगा कर्णाटक में लोकतंत्र कि जीत हो रही है। चिल-पो मचा इन लोगों ने राष्ट्रपति शासन हत्वा दिया। येदुरप्पा ने सत्ता संभाली। लेकिन सवाल उठा कि जेदिएस कि ओर से उपमुख्यमंत्री का पद कौन संभाले । सहमति नही बनी और येदुरप्पा ७ दिन में ही सत्ता से दूर हो गए। अब फिर दोनो पार्टियों ने एक दुसरे के खिलाफ तलवार निकल ली हैं। लेकिन मैं तो कहूँगा इस तमाशे को लगातार देखने वाले किसी गफलत में नहीं रहेंगे । चुनाव के पहले और बाद में कभी भी कोई भी पार्टी साथ आ सकती हैं और लोकतंत्र की ऐसी कि तैसी कर सकती है। आख़िर कर्णाटक में मुख्य खिलाडी पितामह देवेगौडा जी जो हैं। अपने बेटों के लिए तो वो कुछ भी कर सकते हैं, आख़िर वे अपने बेटों के बारे में नहीं सोचेंगे तो कौन सोचेंगे। वैसे ही देश में बेरोजगारी बहुत बढ़ गयी है।

क्या आप हिंदुत्व की नई कसौटी पर खरे उतरते हैं!

मुझे अपने हिन्दू होने पर गर्व है। मेरे विचार में ये अकेला धर्म है जो मुझे किसी काम के लिए रोकता नही। अगर कोई रोके भी तो ये मुझे ये कहने कि शक्ति देता है कि आप तो जाये भाड़ में। आप शायद इसे मेरा हिंदुत्व के प्रति लगाव कह सकते . लेकिन ब्रिटेन के एक विद्यालय द्वारा तय कि गई हिंदुत्व कि नई कसौटियों ने मेरे हिन्दू होने पर ही सवाल उठा दिया है। हालांकि उनके मानक उनके यह नामांकन के लिए तय किये गए हैं. लेकिन आख़िर में उनके मानक तो सारे हिन्दुओं पर लागू होते हैं. आप भी तो जाने हिन्दू होने के लिए उनके मानक क्या-क्या हैं.

अपने दाखिले के आवेदन प्रपत्र में हिंदुत्व की अनोखी परिभाषा देने वाले इस विद्यालय के अनुसार सिर्फ उन्हीं लोगों को हिंदू माना जाएगा जो हर दिन ईश्वर की पूजा करते है, मंदिर में धार्मिक कार्यो में शरीक होते है और मांसाहारी भोजन एवं धूम्रपान से दूर रहते है। लंदन के हैरो स्थित कृष्णा अवंती प्राथमिक विद्यालय ब्रिटेन का पहला हिंदू विद्यालय है जिसे सरकार की ओर से वित्तीय सहायता दी जाती है। हैरो ऐसा क्षेत्र है जहां ब्रिटेन की किसी भी अन्य काउंसिल की तुलना में सबसे अधिक हिंदू आबादी है। यहां कुल 40 हजार हिंदू आबादी बसती है।

सितंबर 2008 में छात्रों के पहले बैच के दाखिले के लिए आवेदन प्रपत्र में हिंदूत्व की एक नई परिभाषा दी गई है। विद्यालय प्रशासन के मुताबिक ऐसे लोगों को हिंदू कहलाने का अधिकार है जो हर दिन घर पर या मंदिर में ईश्वर की पूजा करते है। वे हिंदू ग्रंथों, विशेष तौर पर भगवद्गीता में बताए गए मार्गो का अनुसरण करते हों। हिंदू कहलाने के लिए यह भी आवश्यक है कि वे कम से कम हफ्ते में एक बार मंदिर के धार्मिक अनुष्ठानों में हिस्सा लेते हों। हिंदू कहलाने के लिए मांसाहारी भोजन, शराब, धूम्रपान से दूर रहना भी जरूरी है।

इस विद्यालय का प्रायोजक एक स्वतंत्र चैरिटी संस्थान आई-फाउंडेशन है। संस्थान के प्रवक्ता ने बताया कि ऐसा नहीं है कि जो लोग हिंदुत्व की इस परिभाषा पर खरे नहीं उतरते, उनके आवेदन पर ध्यान नहीं दिया जाएगा। केवल 30 सीटे होने की वजह से निश्चित तौर पर हम उन लोगों को वरीयता देंगे जो इन कसौटियों पर खरे उतरते है। उन्होंने कहा कि हिंदुत्व को परिभाषित करने के लिए इन मानदंडों को बनाना बिल्कुल सही है। ऐसा कर हम समझ सकते है कि कौन हिंदू धर्म को सही तरीके से अपना रहा है।

Saturday 17 November 2007

सेक्सी और कामुक एक चीज़ नहीं!

टीवी पर एक खबर चल रही थी । खबर थी कि बिपासा बासु को 2007 की सबसे सेक्सी एशियाई महिला घोषित किया गया है। यह घोषणा लंदन स्थित अखबार ' ईस्टर्न आई ' ने की है। मेरे सामने मेरे दो मित्र बैठे थे, पेशे से पत्रकार, दोनों देश कि एक प्रमुख टीवी न्यूज़ चैनल के लोग। पहले कि सीधी प्रतिक्रिया थी कि अब सबसे सेक्सी भी चुना जाने लगा है। मैंने कहा इसमे गलत क्या है, ये तो किसी के व्यक्तित्व कि तारीफ़ है। मेरे दुसरे मित्र ने मुझे सेक्सी का मतलब समझाया। उनका कहना था भी साहब आपको जानना चाहिए कि सेक्सी का मतलब कामुक होता है। भला इस जवाब का मेरे पास क्या जवाब हो सकता था, मैं कुछ समझा भी नही सकता था।

खैर मेरे विचार में सेक्सी का मतलब ऐसा नही है। मेरे लिए इस वर्ड का मतलब व्यक्तित्व के बोल्डनेस से है.
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' ईस्टर्न आई ' कि सूचि देखिए: इस सूची में बॉलिवुड की लोकप्रिय अभिनेत्री माधुरी दीक्षित दूसरे और प्रियंका चोपड़ा तीसरे स्थान पर हैं। अखबार द्वारा जारी 10 प्रमुख सेक्सी महिलाओं की सूची में बिपाशा बसु , माधुरी दीक्षित , प्रियंका चोपड़ा , एश्वर्य राय , लैला , शिल्पा शेट्टी , कैटरीना कैफ , करीना कपूर , लारा दत्ता और इमान अली शामिल हैं। अखबार द्वारा वर्ष 2007 की सेक्सी महिलाओं की सूची में ब्रिटेन में जन्मी एशियाई महिलाओं में लैला ( 2 5 ) , अमृता हूंजान (20), शोफी (33) , पूजा शाह (36) और कोनी हक (40) शामिल हैं। गौरतलब है कि यह लगातार तीसरा वर्ष है जब ' ईस्टर्न आई ' अखबार ने एशिया की 50 सेक्सी महिलाओं की सूची जारी की है। वर्ष 2005 में भी इस अखबार ने बिपाशा को ही सबसे सेक्सी एशियाई महिला के खिताब से नवाजा!.......

Wednesday 14 November 2007

अब... बुद्धदेब को कोई हिटलर क्यों नहीं कहता!

'जैसा किया वैसा ही पाया' नंदीग्राम में हो रही हिंसा पर पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेब साहब का यही ताजा बयान है। याद करिये गुजरात दंगे का वक्त जब मोदी ने यही कहा था, सारे देश के तथाकथित विद्वानों ने मोदी को हिटलर कहा । कहाँ है आज वो सारे दिग्गज, वी आज बुद्धदेब को हिटलर के खिताब से क्यों नहीं नवाजते।

अब पढिये बुद्धदेब साहब का बयान. पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य ने नंदीग्राम में सीपीएम कार्यकर्ताओं का बचाव करते हुए कहा है कि उन्होंने जो किया वह उन पर की गई कार्रवाई का जवाब था। कोलकाता में एक पत्रकारवार्ता में उन्होंने कहा कि नंदीग्राम में पहले तृणमूल कांग्रेस के हथियारबंद कार्यकर्ताओं ने सीपीएम कार्यकर्ताओं पर हमले किए थे और उन्होंने 'जैसा किया था वैसा ही पाया'।

मुख्यमंत्री ने उल्टा केन्द्र को ही दोषी ठहराते हुए कहा कि यदि केंद्र सरकार नंदीग्राम में पहले ही केंद्रीय बल भेज देती तो यह सब नहीं होता। बुद्धदेब भट्टाचार्य का कहना है कि उन्होंने केंद्र सरकार से 27 अक्तूबर को सीआरपीएफ़ भेजने की माँग की थी जबकि सरकार ने 12 नवंबर को केंद्रीय बल भेजा.
उन्होंने कहा, "यह मेरी विफलता नहीं है, अगर केंद्र सरकार समय पर जवान भेज देती तो हम इस स्थिति को टाल सकते थे.

Monday 12 November 2007

औरतों से ज्यादती में भारत है टॉप- १०!

भले ही हम कई साल महिला सशक्तिकरण के नाम पर मना ले, और mahilawon के kalyan के नाम पर roj नए sarkari karyakram देखते hon, लेकिन स्थिति सुधरने में अभी भी वक्त लगने वाला है। कुछ यही सामने आया है वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम कि 'गेप इंडेक्स रिपोर्ट' में। इस रिपोर्ट कि माने तो भारत आर्थिक मामलों में, महिलाओं के साथ सबसे ज्यादा भेदभाव करने वाले 10 मुल्कों में शामिल है। यही आर्थिक, राजनीतिक, शिक्षा और स्वास्थ्य में समानता के मामले में भारत 128 देशों में 114 वें नंबर पर है।

महिलाओं को आर्थिक मसलों में भागीदारी और मौके देने के मामले में तो स्थिति और भी खराब है। इसमें भारत १२२वे नंबर पर है। इस इंडेक्स में भारत से नीचे बहरीन, कैमरुन, इरान, ओमान, टर्की, सऊदी अरब, नेपाल, पाकिस्तान का नाम है। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका और फ्रांस भारत से बहुत बेहतर स्थिति में हैं। वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ५९.4 फीसदी महिला-पुरुष के बीच समानता है। जबकि आर्थिक मसलों पर भागीदारी और मौके देने के मामले में यह समानता घटकर ३९.8 फीसदी हो गई है। आर्थिक मामलों में इतने बुरे हालात के बावजूद राजनीतिक सशक्तीकरण के मामले में भारत 21 वें नंबर पर है। 106 महिलाएं संसद में हैं, 118 मंत्री पद पर हैं और कई राज्यों की प्रमुख महिलाएं हैं। आर्थिक समानता इंडेक्स निर्धारित करने के लिए चार पैमाने रखे गए। नौकरी में हिस्सेदारी, समान काम के लिए मिलने वाला वेतन, कानून बनाने में भागीदारी, उच्च अधिकारी, मैनेजर और तकनीकी कर्मचारी। समान काम के लिए समान वेतन देने के मामले में भारत की स्थिति बेहतर हैं। 128 देशों में भारत का नंबर 59 वां है। महिलाओं को आर्थिक हिस्सेदारी और मौके देने के मामले में मोजांबीक सबसे बेहतर स्थिति में है। यहां ७९.7 फीसदी जेंडर इक्वेलिटी है। इसके बाद फिलिपीन, घाना और तंजानिया का नंबर आता है।

नंदीग्राम के अखाड़े से!

इधर kaii दिनों से नंदीग्राम से लगातार खबरें आ रही हैं। खुद को आम आदमी का शुभचिंतक कहने वाले माकपा के लोग किसानों के खिलाफ लड़ रहे हैं। बड़ी-बड़ी हस्तियाँ उनकी में कूद पड़ी हैं। ममता बनर्जी, मेधा पाटकर, अपर्णा सेन, रितुपर्णो सेन, दबे जबान में कांग्रेस के लोग, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और ना जाने कौन-कौन। अब लेफ्ट के बाक़ी सहयोगी भी माकपा के खिलाफ बोलने लगे हैं। प्रधानमंत्री तक को कहना पडा है कि स्थिति चिंताजनक है।

राजनीति कि भाषा जो भी कहे , नंदीग्राम के किसानों के लिए ये अस्तित्व कि लड़ाई है। उसके लिए पिछले कुछ महीनों में उन्होने न जाने कितनी जाने गवाईं हैं। जाने अब भी जा रही है। कोर्ट तक को कहना पड़ा कि पानी सर के ऊपर जा रहा है। बंगाल में उन्ही वामदलों कि सरकार है, जिन्होनें गुजरात दंगों के खिलाफ जमकर बवाल काटा था। मोदी को हिटलर और ना जाने क्या-क्या कहा था। आज वामपंथी धरे के वो सारे बुध्धि भी चुप हैं जो गुजरात दंगों पर खुद आगे आकार बवाल कट रहे थे। कोर्ट और ना जाने कहाँ-कहाँ तक गए थे। आज उनको कोई मौत विचलित नहीं करती। क्युकी नंदीग्राम में बह रहे खून से उनकी राजनीति नहीं चमकती। यहाँ लड़ाई का न तो कोई जातिया आधार है, और ना ही सांप्रदायिक। यहाँ कि लड़ाई किसानों कि है। जो अपने अस्तित्व कि लडाई लड़ रहे हैं।

Saturday 10 November 2007

नंदीग्राम का भी अपना इतिहास होगा !

आने वाले समय में जब भारत का इतिहास लिखा जाएगा तब नंदीग्राम का भी एक पन्ना होगा। एक ऐसी जगह जगह लोग अपनी जमीन के लिए लड़ते रहे, लगातार लोगों ने संघर्ष किया। केवल सरकारी मशिनरी से नही बल्कि पार्टी के कार्यकार्ताओं से भी। ये लड़ाई भी कुछ दिनों कि नही बल्कि महीनों तक चली और अब भी चल रही है। यहाँ आकर सरकारी तंत्र फेल है, और वामपंथ का वो नारा भी कि लोगों कि भलाई उसे सत्ता से ज्यादा प्यारी है। नंदीग्राम में लड़ने अपनी जमीन के लिए लड़ने वाले कोई पूंजीवादी या जमींदार नहीं बल्कि आम किसान हैं, जिनकी राजनीति वाम दल करते आये हैं। आज यही किसान इन पार्टी के कार्यकार्ताओं से लड़ रहे हैं। यही वामपंथी दल के लोग पाकिस्तान में मार्शल ला लगाने का विरोध कर रहे हैं और बुश को भारत का इतिहास समझाने में लगे हुए हैं। लेकिन उन्हें अपने लोगों के खिलाफ लड़ाई कर रहे अपने कार्यकार्ताओं को समझाने का समय नहीं है।

कई महीने हो चुके हैं। केन्द्र में सत्ता बचाने के लिए कुछ भी करने वाली कांग्रेस कि सरकार (नारा- कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ) ने भी कुछ नही किया, और ना ही सत्ता कि दूसरी दावेदार भाजपा ने कुछ किया। किसी को किसानों कि लड़ाई से कुछ लेना-देना नही हैं। लेकिन नंदीग्राम के किसान अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। और आख़िर तक लडेंगे।.......वो अपना इतिहास खुद लिखेंगे, क्युकी यही लड़ाई उनके अस्तित्व का भविष्य तय करेगा । यहीं से उनका इतिहास लिखा जाएगा।

Friday 9 November 2007

आपको 'आरक्षित जरूरतमंद' क्यों नहीं दिखते प्रधानमंत्री जी!

प्रधानमंत्री ने सब्सिडी पर चिंता जताई

{योजना आयोग की बैठक में मनमोहन सिंह ने सब्सिडी पर चिंता जाहिर की, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पेट्रोलियम पदार्थो, कृषि और उर्वरकों पर बढ़ती सब्सिडी को लेकर चिंता व्यक्त की। योजना आयोग की पूर्ण बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा,'' हमें खाद्य, उर्वरक और अब पेट्रोलियम पदार्थो पर बढ़ते सब्सिडी के दबाव को कम करने की ज़रूरत है।'' उनका कहना था कि केवल इस साल इन तीनों मदों पर लगभग एक लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी दी जाएगी।}

------ प्रधानमंत्री जी का दयां मैं इस बात पर दिलाना चाहूँगा कि देश का अरबो रुपया आरक्षण के नाम पर वो लोग चबा रहे हैं, जिन्हें उसकी जरूरत नही है। आरक्षण कि जिन्हें जरूरत है उन्हें तो उसका फैदा कम ही होता है, लेकिन जो लोग जागरूक है और अब मालदार भी वो उसका फैदा उठा रहे हैं, चलते हैं गाड़ियों में, और उनके बच्चे भी अलग से गाडिया लेकर चलते हैं, लेकिन उन्हें स्कूल, कालेज, परीक्षा , यहाँ तक कि पैदा होने के लिए भी पैसा मिल रहा है।

अब आपको मैं एक उदाहर्ण देकर बताना ठीक रहेगा। मेरा एक दोस्त है, उसके पिता जी आरक्षण कि सिढी चदकर आज बैंक में अच्छे पद पर हैं, वो लड़का सब तरह से संपन है। लेकिन रेलवे कि परीक्षा के लिए उसे न तो फॉर्म भरने का पैसा देना padtaa है, और naa ही देश में kahi jaane के लिए सीट आरक्षित कराने का पैसा। परीक्षा तो उससे निकलने वाला तो है नही, लेकिन उसका कहना है कि देश भर में फ्री में घूमने का इससे अच्छा मौका क्या हो सकता है। अब प्रधानमंत्री जी जरा सोचिये कि क्या ये फिजूलखर्ची नही है। क्या इसे रोकने पर आपको नही सोचना चाहिऐ। और किसानों कि सब्सिडी रोक कर भी आप क्या कर लेंगे । अगर आप रोकेंगे तो वो फर्जी कागज बनाकर गरीब बने रहेंगे, आख़िर आपके नेतावो और अधिकारियो के लिए भी तो यही फैदेमंद रहेगा।

Saturday 3 November 2007

ऑर्कुट अकाउंट के लिए हो सकता है जेल, हुआ भी है!

मैं आपको जो खबर बताने जा रहा हूँ वो हम सब इंटरनेट को चबाने वाले भाई लोगों के लिए बहुत अहम है। खबर ऑर्कुट कि है। इस खबर का मतलब हम सब ऐसे लोगों से है जो ऑर्कुट पर जाते है और बेबाक तरीके से लोगो और ग्रुप को जोड़ने का काम करना अपना हॉबी मानते हैं। मैं निचे जो ह-बहु देने जा रह हूँ, संजय लीला भंसाली या मधुर भंडारकर कि किसी आने वाली फिल्म कि स्क्रिप्ट नहीं बल्कि नवभारत तिमेस कि वेबसाइट पर लगी एक खबर है। किसी भी दिन पुलिस आपके घर पहुंच सकती है और आप भी कैलाश भी कि तरह कोई टोपी पहना दिए जाओगे ..........................................
खबर -----
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ऑर्कुट अकाउंट के लिए 50 दिन जेल में
31 अगस्त की अल सुबह लक्ष्मण कैलाश बेंगलुरु में अपने घर में गहरी नींद में थे। अचानक 8 पुलिसवाले उनके घर पहुंचे। पुणे से आए ये पुलिसवाले जोर-जोर से उनका दरवाजा खटखटाने लगे। कैलाश ने दरवाजा खोला तो इन्फर्मेशन टेक्नॉलजी एक्ट उनके उनींदे से मुंह पर मार दिया गया।
पुलिसवालों ने उनसे कहा कि कपड़े पहनो, तुम्हें शिवाजी के अपमान के आरोप में हम पुणे ले जाएंगे। कैलाश ने कहा कि वह तो किसी शिवाजी को नहीं जानते।

पुलिस ने बताया कि बात छत्रपति शिवाजी की हो रही है और उनकी एक अपमानजनक तस्वीर ऑर्कुट पर अपलोड की गई है। उसी वेबसाइट का पीछा करते-करते वे कैलाश तक पहुंचे थे।
कैलाश की बात नहीं सुनी गई और उन्हें पुणे ले जाया गया। कैलाश को सलाखों के पीछे डाल दिया गया। बाद में उन्हें पता चला कि उन्हें पुणे में नवंबर 2006 में हुए दंगों के मामले में गिरफ्तार किया गया है।

तब कुछ राजनीतिक दलों ने साइबर कैफे बंद करवा दिए थे और उपद्रव मचाया था क्योंकि कथित रूप से शिवाजी के एक चित्र का मजाक उड़ाया गया था।

कुछ दिन बाद पुलिसवालों ने दावा किया कि उन्होंने असली अपराधियों को पकड़ लिया है। उसके तीन हफ्ते बाद कैलाश को रिहा किया गया। तब तक वह जेल में 50 दिन गुजार चुके थे। एचसीएल में काम करने वाले 26 साल के कैलाश को तब समझ में आया कि उनका कुसूर था ऑर्कुट में उनका अकाउंट।

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Friday 2 November 2007

अनंत सिंह- लालू राज से नीतिश राज का सफर

हाल के कुछ सालों में अनंत सिंह के बारे में बहुत कुछ देखा-सुना । यही कोई दो-तीन साल पहले ए-के ४७ लेकर नाचते टीवी चैनलों ने दिखाया था । तबसे अनंत सिंह का कद बढता गया है, बिहार में। सच में देखा जाये तो अनंत सिंह को बिहार के वर्तमान सरकार नीतिश कुमार का छोटा सरकार यूं ही नही कहा जाता । बिहार और देश कि राजनीति में जैसे-जैसे नीतिश का कद-बढता गया अनंत सिंह भी तेज़ी से बिहार कि राजनितिक पटल पर छाते गए। हमने जब पहली बार अनंत सिंह के बारे में सूना तो ज्यादा वक्त नही लगा समझने में कि किस प्रजाति कि हस्ती होंगे भाई साहब । बिहार कि उस पीढ़ी के लिए ये मुश्किल काम नही है, जो शहाबुद्दीन, आनंद मोहन और पप्पू यादव को देखते हुए बड़ा हुआ है।

अनंत सिंह ने मीडिया वालों को पित्वाया , इस पर कोई हैरानी नही हुई। कारन कि अनंत सिंह से जो इससे अच्छे व्यवहार कि उम्मीद करे वो पागल ही कहा जाएगा। लेकिन अपने लालू जी ने मौका नही गवान्या । कहने लगे नीतिश राज में कुशासन है। अब लालू जी ऐसा तो है नही कि आप के सारे लोग दूध के धुले हैं, अब अपने दोनो साले साहब लोगों को ही देख लीजिये। ये भी नही है कि अनंत सिंह नीतिश राज में ही आगे बढे हैं। उनका ज्यादा अपराध तो लालू राज में ही हुआ था । अब आप उस समय क्यों नही काबू किये। करते भी कैसे, पहले अपने लोगों को भी तो बंद करना पड़ता।