गाँव में सालाना नाटक के मंचन का दिन नजदीक आता जा रहा है। हर साल नाटक मंडली में सक्रिय रहने वाले लोगों को इस बार कोई मुद्दा ही नहीं सूझ रहा है। सूझता भी कैसे, कल ही के अखबार में सरकार का बयान पढ़ा था कि इस बार विपक्ष के पास कोई मुद्दा ही नहीं है। जाहिर है जब विपक्ष के पास मुद्दा ही नहीं है तो सत्ता पक्ष के पास मुद्दे कहाँ से होंगे। सत्ता पक्ष तो वैसे भी हमेशा मुद्दाविहीन होता है। इस मुद्दाविहीन माहौल में उम्मीद की किरण तलाशने के लिए शाम को गाँव के चौपाल पर बैठक बुलाई गई। शाम को जल्दी ही सब तैयारी में लग गए, आख़िर अपने लिए एक अच्छा रोल झटकना था। कोई भी तैयारी में कमी नहीं रहने देना चाहता था। तैयारी भी ऐसी कि संचालक मंडल के सदस्य इम्प्रेस होकर उनका मनचाहा रोल देने के लिए हामी भर दे।
चौपाल सजी। बीच में बुधुवा काका आसान लगाये बैठे। मंडली के सबसे वरिष्ठ सदस्य होने के नाते ये स्थान उनके लिए पक्का है। भले ही १० सालों से बुधुवा काका स्टेज पर नहीं दिखे हो लेकिन ऑफ़ स्टेज उनके अनुभव और मैनेजमेंट के सब कद्रदान है। अब रामलीला के दौरान हुई घटना को कौन भूल सकता है। राम-सीता के विवाह का सीन नजदीक आ रहा था और सीता का रोल कर रहा मंगल बाहर दर्शकों की भीड़ देखकर अचानक शरमा गया। शरम के मारे मंगल स्टेज पर आने को तैयार ही नहीं दिख रहा था। ऐन वक्त पर बुधुवा काका ने उबार लिया। मंगल के कान में जाने काका ने क्या मन्त्र फूंका। मंगल स्टेज पर भी पहुँचा और ऐसी अदाकारी दिखाई कि दर्शकों को जी भरकर तालियाँ पीटनी पड़ी।
हाँ तो हम बात मुद्दे की कर रहे थे। बुधुवा काका ने चौपाल पर बैठे बाकी साथियों पर एक नज़र दौडाई और कार्यक्रम शुरू किया। हां तो भाइयों इस बार गाँव में भारी बारिश और बाढ़ से बहुत तबाही हुई है और कल ही पंडित जी कह रहे थे कि देवी माई की नाराजगी के कारण ऐसा हुआ है। तो क्यूँ न इस बार का नाटक देवी माई को प्रसन्न करने के लिए खेला जाए। मंडली के बाकी सदस्यों ने हो-हो कर काका का सपोर्ट किया। लेकिन लक्ष्मण को ये प्रस्ताव बिल्कुल नहीं जंची। उसे लगा कि अगर नाटक देवी माई पर खेला जाएगा तो रोज अखबारों में से पढ़े हुए उसके राजनीतिक ज्ञान का क्या इस्तेमाल होगा। उसने फट से कह डाला- काका, मेरे विचार में इस बार कुर्सी के खेल पर नाटक खेलते हैं। सब अचानक लक्ष्मण की ओर देखने लगे। तवा गरम देख हथौरा मारने की बात सोच उसने कहा- काका इस बार देश-दुनिया में कई दिग्गजों की कुर्सियां चली गई और कई की जाने वाली है। क्यों न हम इसपर नाटक खेले। परमाणु करार के बवाल में झारखण्ड के मधु कोडा को कुर्सी से हाथ धोना पडा और गुमनामी में दिन काट रहे गुरूजी को अचानक कुर्सी हथियाने का मौका मिल गया। उधर पाकिस्तान में जनरल साहब की कुर्सी चली गई। १० सालों से मुल्क में मनमानी कर रहे जनरल साहब पर वक्त की मार ऐसी पड़ी कि कुर्सी तो गई ही मुल्क छोड़ने तक का मौका नहीं मिला। कहाँ कल तक सबको अन्दर किए जा रहे थे और भारत को गरियाया करते थे, आज उसी मुल्क में अपने ही घर में नजरबन्द पड़े हुए हैं। मुश् साहब के अलावा अपने बुश साहब की कुर्सी जाने का वक्त भी आ गया है। इराक़, अफगानिस्तान और ईरान को सुधारने में लगे हुए कब वक्त बीत गया पता ही नहीं चला। और अब इन सबकों न सुधार पाने की टीस मन में लिए बुश साहब इस बार व्हाइट हाउस को अलविदा कह देंगे। कुर्सी जाने का खतरा तो अपने सरदार मनमोहन सिंह जी पर भी आ गया था। वो तो किस्मत अच्छी थी कि विपदा टल गई. सबको खामोश देख लक्ष्मण ने आवाज ऊँची करते हुए कहा कि इस बार के नाटक के लिए ये आईडिया हिट साबित हो सकता है.
लक्ष्मण को बोलते देख रंगीला से नहीं रहा गया। फट से बोल उठा- का इ बोरिंग आईडिया सुन रहे हैं आपलोग। इस बार तो कजरारे-कजरारे टाइप कुछ रंगीन होना चाहिए। मन ही मन रंगीला सोच रहा था कि अगर इस बार स्टेज पर डांस करने का मौका मिल गया तो पूरे गाँव के साथ चमकी भी तो मेरे लटके-झटके देख सकेगी। क्या पता इस बार उसका दिल मुझ पर आ ही जाए। और मेरे स्टाइलिश बालों की कटिंग पर हर महीने खर्च होने वाला २० रुपया भी तो वसूल हो जाएगा। बाल लहराते हुए उसने अपना आईडिया सबको सुना डाला। सबके चेहरे चमक उठे लेकिन जैसे ही सवाल उठा कि आइटम गर्ल कौन बनेगा तो सब के मुंह पर ताला लग गया। रंगीला का आईडिया स्टेज पर आने के पहले ही फ्लॉप हो गया।
रंगीला को पस्त होते देख झब्बू की बांछे खिल उठी। आख़िर रंगीला ही तो गाँव की लड़कियों के लिए रेस में उसे टक्कर देता है। लेकिन झब्बू अपनी निशानेबाजी के लिए पूरे गाँव में मशहूर है। आम के पेड़ पर से आम तोड़ने में शायद ही उसके किसी ढेले का निशाना फेल होता है। ओलम्पिक के समय से तो लोग उसे गाँव के अभिनव बिंद्रा के नाम से पुकारने लगे हैं। झब्बू भी इधर कुछ दिनों से मैडल जैसा कुछ गले में लटका कर घुमने लगा है। उसका सपना है कि आस-पास के गाँव में कभी कोई ढेलेबाजी का चैंपियनशिप हो तो वो गोल्ड मैडल जीत कर लाये और तब असली मैडल गले में लटका कर घूमेगा। तभी चमकी को इम्प्रेस कर रंगीला को पछाडा जा सकेगा। झब्बू ने ओलम्पिक पर नाटक का प्रस्ताव रखा। लेकिन राम्बुझावन बीच में बोल उठा- भाई टीवी हम भी देखते हैं। ओलम्पिक के आईडिया तक तो ठीक है लेकिन उदघाटन समारोह के लिए छोटे-छोटे कपड़े पहने बहुत सी लडकियां कहाँ से लोगे। सब फ़िर खामोश हो गए और झब्बू मन मसोस कर रह गया।
झब्बू के पीछे बैठा रामखेलावन अलग ही दुनिया में खोया हुआ था। उसकी आंखों में इस बार गाँव में आई बाढ़ का सीन तैर रहा था। बीमार माँ-बाप और नन्हे भाई-बहनों को लेकर पानी से भरे अपने घर को छोड़कर उसे ४० दिन तक गाँव के नहर पर रहना पडा था। पहली बार इस बार उसे श्यामू काका के साथ नाव पर चढ़ने का भी मौका मिला था। और सबसे ज्यादा मजा तो उसे तब आया था जब खाना गिराने वाला हेलीकाप्टर ऊपर मंडरा रहा था। शायद पहली बार आकाश में उड़ते हुए हेलीकाप्टर को उसने इतने करीब देखा था। लेकिन तब उसे इस बात का होश कहाँ था। ऊपर से गिरते हुए खाने के पाकेटों को लुटने के लिए उसे हमेशा बापू की शाबाशी मिलती थी। आगे-पीछे भागते लोगों को धकिया कर २ पाकेट खाना तो वो आसानी से लूट लाता था. रामखेलावन के मन में आया कि बाढ़ पर नाटक का आईडिया काका को सुना दे लेकिन लक्ष्मण, रंगीला और झब्बू के रंगारंग आईडिया को फ्लोप होते देखकर अपने आईडिया को वह मन में ही दबा गया. फ़िर बाढ़ वाले दिन का वो पल तो वो कभी भूल ही नहीं सकता है. कैसे घुमने आए नेताजी ने उसके सर पर हाथ फेरा था. रामखेलावन ये तो नहीं जानता था कि ये नेता जी कौन हैं और उनका काम क्या है. पूछने पर श्यामू चाचा ने बस इतना ही कहा कि नेता जी बहुत बड़े आदमी हैं और पास के ही गाँव के हैं. लेकिन हम लोगों के कल्याण के लिए इन दिनों दिल्ली में रहने लगे हैं. इस काम के लिए सरकार ने उन्हें दिल्ली में बड़ा सा बंगला दिया है और ऊपर उड़ने वाले हवाई जहाज से ही ये आते जाते हैं. रामखेलावन ने हवाई जहाज तो देखा था लेकिन दिल्ली कभी नहीं देखा. उसे लगा जैसे उसके पास रहने के लिए उसका अपना घर है वैसे ही नेताजी के पास दिल्ली होगी। चौपाल पर क्या चल रहा था इससे रामखेलावन को कोई मतलब नहीं रह गया. वो अपनी पुरानी यादों में खो गया. झब्बू और रंगीला की तरह उसका कोई सपना भी नहीं था. उसके ख्यालों में बाढ़ का पानी और उसमें डूबते-उतराते उसके अपने घर का सामान तैरने लगा। उसके सपनों में नहर पर जमा इत्ते सारे लोग और चारो ओर पानी का अथाह समंदर और भी जाने क्या-क्या घुमड़ने लगा...
3 comments:
Aage kya hua aapko koee zannatedar role mila ki nahi ?
मुद्दे तो देश में बहुत है. लेकिन उन मुद्दों की तह में जाकर उनके हल निकलने की तड़प बहुत कम लोगों मैं होती है. मुद्दों को गिनने के साथ ही उनके हल के बारे में भी चर्चा ज़रूरी है. लेकिन यह भी सही है की यह दुनिया एक रंगमंच है.हर कोई अपना किरदार निभा रहा है. सभी को अपने किरदार की चिंता है. हर कोई चाहता है की नाटक उसके किरदार के हिसाब से रचा जाए,नाटक और उसके मकसद को कोई नही पहचान पाता है .पहचानता तब है जब वो जीवन की पारी समाप्त कर चुका होता है. यही जीवन का सत्य है.
अपनी बात कहने के लिए अपने जिस तरह ग्रामीण परिवेश के प्रतीकों को प्रयोग किया.उसकी कितनी भी तारीफ़ की जाय वो कम है.
भईया मजा़ आया, बढिया लिखा है।
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