Tuesday 15 February 2011

इस कलयुग में ईमानदार होने का दर्द!

कहानी भारतभूमि पर आज से ५० साल पूर्व जन्मे दीनानाथ चम्पकलाल की है जिन्होंने गांधीजी और शास्त्रीजी की शिक्षाप्रद कहानियों और उपदेशों से ओत-प्रोत होकर अपनी पूरी जवानी इमानदार बनने और उसका डंका पीटने में काट दी. युवा चम्पकलाल जब अपने किशोरकाल में अपने सीने पर चे-ग्वेरा की तस्वीर वाला टी-शर्ट चिपकाये घूमते थे तो उन्हें मोहल्ले में हीरो जैसी फीलिंग होती थी. हाँ. घर पहुचने पर उन्हें पिताजी की नसीहत जरूर सुनने को मिलती थी कि कुछ काम-धंधा सिख लो या पढ़ाई वगैरह कर लो. समय बड़ा ख़राब आ रहा है. तब चम्पकलाल मन ही मन सोचते- देश आजाद हो गया है, गाँधी-नेहरु का युग आ गया है, गोरे लोग चले गए अब काहे का डर, अब सब कुछ अच्छा ही होगा. इमानदारी की गठरी मन में दबाये चम्पकलाल मन ही मन अपने पिता की नासमझी पर तरस खाते और फिर चे-ग्वेरा की टी-शर्ट छाती पर चिपका घर से निकल पड़ते. असलियत से उनका सामना पहली बार तब हुआ जब वे देश सेवा का जज्बा दिल में लिए पुलिस में भर्ती होने के लिए जिला मैदान पहुंचे. भर्ती स्थल के बाहर खड़े दलाल ने उनकी ईमानदारी से भरी बातें सुनकर पहले ही उनका भविष्य बता दिया जो कि बाद में सच भी साबित हुआ. खैर अगले साल पुस्तैनी जमीन में से एक बीघा गवां कर उनके पिताजी उन्हें डाक खाने में बाबू बनवाने में सफल रहे. वहां भी ईमानदारी ने चम्पकलाल का साथ नहीं छोड़ा और करीब बीस सालों तक वे डाकखाने की फाइलों में उलझे रहे. फिर उनको होश तब आया जब उनके सुपुत्र जूनियर चम्पकलाल किशोरवय को प्राप्त हुए और उनका दाखिला कॉलेज में हो गया. फर्स्ट डे कॉलेज से वापस आते ही जूनियर ने पल्सर बाइक की डिमांड रख दी और तब ही माने जब सीनियर चम्पकलाल का पीएफ अकाउंट खाली होकर पल्सर बाईक की शक्ल में दरवाजे पर नमूदार हो गया।
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बेटी जवान हो रही थी और चम्पकलाल को उसकी शादी की चिंता भी सताए जा रही थी. तभी उनके मन में विचार आया की पुश्तैनी जमीन कब काम आयेगी. खैर पुश्तैनी जमीन का एक अच्छा-खासा हिस्सा गवांकर वे इस समस्या से भी निजात पाने में सफल रहे. २१वी सदी शुरू हो चुकी थी और अब भी चम्पकलाल ईमानदारी भरी सोच के चंगुल से निकल नहीं पा रहे थे. इमानदारी से डाकखाने की फाइलों में खोये चम्पकलाल की जिंदगी में तब फिर तूफ़ान उठ खड़ा हुआ जब पडोसी विमला चाची के यहाँ एलपीजी गैस के सीलिंडर का आगमन हुआ. तब करीब दो दशकों से चूल्हा फूंक-फूंक कर थक चुकी चम्पकलाल की श्रीमती कमला देवी का रहा-सहा धैर्य भी जवाब दे गया और उन्होंने साफ़ शब्दों में कह दिया कि जबतक गैस नहीं आएगा घर में खाना नहीं बनेगा. उनका ये क्रांतिकारियों टाइप रौद्र रूप देखकर चम्पकलाल को अपनी जवानी वाली टी-शर्ट पर छपे चे-ग्वेरा की तस्वीर याद आ गयी. खैर इमानदार चम्पकलाल पूरे दस्तावेजों के साथ गैस सीलिंडर के कार्यालय पहुंचे. वहां काउन्टर पर बैठे क्लर्क ने साफ़ शब्दों में उन्हें बताया कि अभी साल-दो साल तक नया नंबर नहीं लगेगा, हजारों लोग नंबर में हैं. चम्पकलाल के सर पर जैसे घरों पानी पड़ गया हो. बाहर एक आदमी से पूछने पर उसने बताया कि किसी सांसद-विधायक से सिफारिश करवाओगे तो तुरंत मिल जायेगा. अब भला चम्पकलाल सांसद-विधायक की सिफारिश कहाँ से लाते. उन्हें तो बस नेताओं का वह रूप याद था जब वे समर्थकों और बैनर-पोस्टर के साथ हर पांच साल पर हाथ जोड़े वोट मांगने आया करते थे. सांसद-विधायक तो उन्होंने कभी देखे ही नहीं थे. खैर पूछने पर पता चला कि मार्केट में गैस की दुकान वाला ब्लैक में सीलिंडर दिलवा देगा. बीवी की आक्रामक मुद्रा से सहमें चम्पकलाल ने दुकानवाले को तीनगुना रकम अदा कर गैस हासिल किया और तब घर में उनकी एंट्री हो पाई हालाँकि इस दौरान उनपर १० हजार का कर्ज चस्पा हो गया. फिर भी वे अटल रहे और अपनी ईमानदारी को न छोड़ने का संकल्प दोहराकर फिर अपनी डाकखाने की फाइलों में खो गए.
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इधर उन्होंने अपना संकल्प दोहराया उधर इतिहास भी खुद को दोहराने की तैयारी में था. कॉलेज पास कर जूनियर चम्पकलाल ने नौकरी दिलाने की जिद शुरू कर दी. अब बेचारे चम्पकलाल इसका जुगाड़ कहाँ से करते. एक माह की भागदौड़ के बाद गाँव के छुटभैये नेता कल्लन काका ने उन्हें नौकरी दिलाने का वादा कर दिया बदले में एक लाख रूपये की मांग भी रख दी. अब चम्पकलाल क्या करते बेटे को बेरोजगार तो छोड़ नहीं सकते थे. जो पुश्तैनी जमीन बची थी उसे भी ठिकाने लगाकर जूनियर चम्पकलाल को जिला कार्यालय में बाबू बनवाने में सफल रहे. इतिहास खुद को दोहरा गया था लेकिन चम्पकलाल को अब भी संतोष था. उन्हें यायावर कवि नागार्जुन की पंक्ति याद आ गई-
"बापू को हीं बना रहें हैं तीनों बन्दर बापू के
बापू के भी ताऊ निकले तीनों बन्दर बापू के"
चम्पकलाल के चेहरे पर अचानक मुस्कान बिखर गया पर उन्हें एक बात का संतोष अब भी था कि उन्होंने अपनी ईमानदारी नहीं छोड़ी है.