Tuesday 12 April 2011

भ्रष्टाचार का मुद्दा और सरपंच कल्लन काका की गुगली..!


गांव के सरपंच कल्लन काका  ने सुबह से जब से अखबार में भ्रष्टाचार के खिलाफ देश की राजधानी दिल्ली में किसी अन्ना हजारे नाम के बुजुर्ग समाजसेवी की भूख हड़ताल की कहानी को पढ़ा था तभी से उनके चेहरे की चमक उड़ी हुई थी। कहीं ये आग देर-सबेर उनके गांव में भी न पहुंच जाये और गांधीजी के नाम की माला जपने वाले उनके विरोधी मास्टर रामनगीना कहीं इसी हथियार को अपनाकर उनके खिलाफ गांव के लोगों की सहानुभूति न बटोर ले जाये। इसी चिंता में काका सुबह से घुले जा रहे थे। अपने सिपहसलार मोहन को आते देख काका ने तुरंत अपनी चिंता उसे बताई और कहा कि इस आंधी से खुद को बचाने के लिए क्या उपाय किये जायें बताओ?
.
काका को पता था कि भ्रष्टाचार के क्षेत्र में उनके लंबे कैरियर को भले ही अबतक वे गोपनियता और विशेषाधिकार के नाम पर बचाते आ रहे हों लेकिन अगर ये अन्ना हजारे वाली आंधी गांव में पहुंच गई तो रामनगीना मास्टर उनके खिलाफ मोर्चा खोलने का कोई मौका गंवाएंगे नहीं। काका ने मोहन से पूछ डाला कि अरे भाई ये  लोकपाल आखिर क्या बला है जिसके ऊपर ये अन्ना हजारे साहब दिल्ली में बैठे हुक्मरानों की नाक में दम किये हुये हैं। कहां मिलेगी ये? हम भी लाकर गांव में इसे स्थापित करवा दें ताकि रामनगीना मास्टर को मौका न मिले हमारे खिलाफ मोर्चा खोलने की। मोहन ने काफी कुछ सोचा और कहा कि आज शाम को इस मामले पर अपने कोर ग्रूप की बैठक बुला ली जाए ताकि जल्द से जल्द लोकपाल की मूर्ति की स्थापना कर गांव के लोगों को कल्लन काका की भलमनसाहत का परिचय दिया जा सके। शाम को बैठक हुई और सर्वसम्मति से रणनीति बना ली गई और कार्यक्रम के लिए 1 अप्रैल का दिन मुकर्रर किया गया। काका और उनकी टीम ने इस दिन की तैयारी के लिए पूरी ताकत झोंक दी आखिर अगले साल होने वाले सरपंची के चुनाव में जीत भी तो पक्की करनी थी।
.
खैर यह दिन भी आ गया। पूरे गांव को फूल-माला से सजाया गया, एक-दम मेले जैसा मंजर था। खद्दर के कुर्ते में काका खूब फब रहे थे, पॉकेट में भाषण की तैयार की गई कॉपी रख काका मंच पर बिराजे। मंच पर काका की कुर्सी के पीछे गांधीजी की तस्वीर लगा दी गई और बगल में भारत माता का चित्र। काका ने जमकर भाषण दिया और भ्रष्टाचार के मामले पर जीरो टॉलेरेंस की अपनी प्रतिबद्धता पूरे जोश के साथ दोहराया। काका ने यहां तक कहा कि जबतक उनके शरीर में प्राण रहेगा गांव में भ्रष्टाचार को पनपने नहीं देंगे और इसी के लिए चौपाल पर लोकपाल की मूर्ति स्थापित करवा रहे हैं ताकि भ्रष्टाचार से लड़ने की उन्हें निरंतर प्रेरणा मिलती रहे। खैर मंच का कार्य़क्रम खत्म हुआ और गांव की जनता के लिए काका द्वारा व्यवस्थित सांस्कृतिक कार्यक्रम का दौर शुरू हुआ। गांव के युवाओं की विशेष इच्छा को देखते हुये काका ने पड़ोस के जिले से मशहूर बिजली रानी का ऑरकेस्ट्रा बुला रखा था। भ्रष्टाचार के ऊपर काका के जोशिले भाषण के बाद मुन्नी की बदनामी और शीला की जवानी की स्वरलहरियों पर बिजली के डांस ने  गांव के युवाओं को झूमा कर रख दिया। कार्यक्रम के समापन पर जहां गांव के सारे लोग काका के समारोह से खुशी में आकंठ डूबे लौटे वहीं भ्रष्टाचार पर उनकी प्रतिबद्धता और लोकपाल मामले पर उनकी पहल की भी कम सराहना नहीं हुई। अपनी योजना सफल होते देख काका की खुशी का भी ठिकाना नहीं था उन्हें पूरा भरोसा था कि अगले साल सरपंची के चुनाव में अब उनकी जीत को कोई नहीं रोक सकता।  उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे उनकी  उम्र १० साल घट गई हो। पर काका से ज्यादा खुशी उनके पीछे खड़े बब्बन को हो रही थी आखिर वहीं इस पूरे कार्यक्रम का फाइनेंसर था और अब काका की सफलता से उसे भरोसा दो गया था कि गांव में शराब के ठेके पर अगले पांच साल तक उसके कब्जे को कोई और चुनौती नहीं दे पाएगा। आखिर काका का हाथ उसके साथ जो है।

Monday 11 April 2011

ब्रांड अन्ना और युवा भारत की आजाद मंशा..!


पिछला हफ्ता काफी गहमा-गहमी वाला रहा. भारत के राजनीतिक क्षितिज पर तमाम पुराने घाघ राजनेताओं की मौजूदगी और उनकी अनिक्क्षा के बावजूद ७२ साल के एक बुजुर्ग अन्ना हजारे का नाम इस तरह नमूदार हुआ कि सब भौचक देखते रह गए. इस पूरी लड़ाई में बुजुर्ग अन्ना और उनके पीछे खड़ा देश का युवा, कामगार वर्ग(सरकारी तंत्र से जुड़े लोगों को छोड़कर) और प्रौढ़ आबादी सीन में था और बाकी सब राजनीतिक चेहरे इस दौरान गौण हो गए. आखिर ऐसा क्या हुआ कि भारत के जिस युवा आबादी के बारे में कहा जा रहा था उसे क्रिकेट और मौज-मस्ती से फुर्सत ही नहीं है वह अचानक उठकर हाथों में तिरंगा थामकर अन्ना के पीछे खड़ा हो गया?
.
मोटे तौर पर इसके दो कारण दिख रहे हैं.
पहला तो ये कि पिछले साल-दो साल में देश में जिस तरह से करोडो-अरबो के घोटाले लगातार सामने आते जा रहे थे और राजनीतिक नेतृत्व उसपर अपनी उदासीनता और बेशर्मी दिखाए जा रहा था उसे लेकर लोगों के मन में खासकर युवाओं के मन में काफी गुस्सा पनप रहा था. उसी गुस्से को अन्ना हजारे ने एक आवाज दी. लोगों को एक ऐसा मंच मिल गया जहाँ से उन्ही के मन की बात कोई कह रहा था. लोगों ने देर नहीं की और आन्दोलन के साथ हो लिए.
.
दूसरा जो कारण दिख रहा है वह है कि आजाद भारत में पहली बार एक बड़े मंच से किसी ने राजनीतिक बिरादरी को यह बताने की जुर्रत की है कि सरकार का काम क्या है. अन्ना हजारे ने बार-बार जोर देकर कहा कि लोकतान्त्रिक भारत में जनता देश की मालिक है और हुक्मरान केवल सेवक. जिन्हें जनता की प्रगति और विकास के काम के लिए लगाया गया है. उसी काम के बदले देश के खजाने से उन्हें वेतन आदि दिया जाता है और इसी से उनके घर-परिवार की रोजी-रोटी चलती है. अत उन्हें अपने काम और कर्तव्य को समझना होगा.
.
हुक्मरान बुरा माने या अच्छा... अन्ना हजारे ने अपने आन्दोलन के जरिये उन्हें एक मौका दिया है.. आगाह किया है कि इससे पहले कि देश की जनता अपना आपा खो दे हुक्मरानों को इस अंधेरगर्दी के दौर को ख़त्म कर ईमानदारी और जवाबदेही का रास्ता अख्तियार कर लेना चाहिए. २१वी सदी में दुनिया से कदम मिलाकर चलने को आटूर हिंदुस्तान की युवा आबादी नहीं चाहती कि कुछ चंद बेईमानो के कारण उनके देश को कोई भ्रष्ट और करप्ट देश कहे. ना ही यहाँ का कामगार वर्ग टैक्स चुकाने के बावजूद आपनी अगली पीढ़ी को एक भ्रष्ट व्यवस्था सौपना चाहता है.
.
अन्ना हजारे के इस आन्दोलन ने एक और काम जो किया है वह यह कि ईमानदारी की बात करने वाले जिन लोगों को कल तक लोग पुराने ज़माने का आदमी और आज के भ्रष्ट व्यवस्था के लायक नहीं समझते थे अचानक से उनका मनोबल बढ़ गया है और वे अब अपनी ईमानदारी भरी बात एक बार फिर से बुलंद होकर करने लगे हैं और बेईमानों का स्वर हल्का पड़ गया है. यही है ब्रांड अन्ना का कमाल जो कि पिछले एक हफ्ते में मार्केट में आया है और अपनी अमिट छाप छोड़ गया है.