१८५७ कि ग़दर के १५० वी वर्षगांठ मनाई जा rahi है पूरा देश और हमारी सरकार भी इसके जश्न मे डूबी हुई है । टीवी पर ये खबर बार-बार दिखायी जा रही थी ऐसे मे जब चैनल बदला तो झारखण्ड कि राजधानी रांची कि कोई खबर आ रही थी, रिलायंस फ्रेश के किसी स्टोर पर वहा के सब्जी व्यापारियों कि हमले की खबर थी । मैंने चैनल बदल कर फिर पिछली खबर देखी ओर फिर मैं इन दोनो खबरो मे संबंध तलाशने लगा । एक तरफ भारे पर लाए गए लोग अतीत के अपने ग़दर को सम्मान देने के लिए घंटो पैदल मार्च पर थे, हालांकि रस्ते मे उन्हें खाने पिने कि तकलीफ हुई ओर वी तोड़-फ़ॉर पर आमादा हो गए थे, और दुसरी तरफ ऐसे सब्जी बेचने वाले कारोबारी थे जो रांची जैसे छोटे से शहर में सब्जी बेचकर अपने परिवार का पेट पाल रहे थे ओर आज रालिंस जैसी बड़ी कंपनी के जाने से उन्हें अपना रोजगार छीनता हुआ दिखायी दे रहा था । इस कारन वी ग़दर पर आमादा हो गए है ।
जब इसपर चर्चा चल रही थी तो मेरे एक मित्र ने इसका प्रतिवाद किया ओर कहा कि रिलायंस के वह आने से किसानो को उनकी उत्पाद कि अच्छी कीमत मिलने लगेगी तो इसमे क्या बुराई है । भाई मेरे किसी जगह पर अगर बहार के लोग जाकर वह कि व्यवस्था में बदलाव करने लगते है तो वहा कि जनता वही करेगी जो भारत कि जनता ने अंग्रेजो के खिलाफ किया था । केवल प्रतीकात्मक ग़दर मनाकर किसी का भला नही होने वाला है । जब लोगो के अपने अस्तित्त्व पर खतरा आयेगा तो वो तो ग़दर करेंगे ही , ये तो अपने देश का इतिहास रहा है ।
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