Sunday 25 March 2012

तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है..


योजना आयोग ने एक बार फिर आकड़े देकर शहरों में 28 रुप्या और गांव में 22 रुप्या रोजाना कमाने वालों को गरीबी रेखा से ऊपर घोषित कर दिया है। वैसे भी दिल्ली के चश्में से देखने वालों के लिए भारत एक चमकता हुआ देश है। जहां रोज मॉल बन रहे हैं..मल्टीप्लेक्स खुल रहे हैं, गगनचुंबी होटल खड़े होते जा रहे हैं और भी न जाने क्या-क्या हो रहा है इस भारत देश में...लेकिन दूसरी तरफ दो-तिहाई लोग आज भी गरीबी का जीवन जी रहे हैं..उनके यहां चौबीसो घंटे बिजली नहीं रहती, गैस पर खाना नहीं बनता, चमचमाती लक्जरी गाड़ियां नहीं हैं, छुट्टिया मनाने के लिए वे प्लेन में दुनिया की सैर नहीं करते। अभी भी उनका अधिकांश समय दो जून की रोटी जुगाड़ने में बितता है। खुद को सुपर पावर कहलवाने की जी-तोड़ कोशिश में लगे इस भारत में गरीबी हटाओं का नारा लगने के 40 सालों बाद भी इस आबादी की गरीबी अभी तक नहीं मिटी है।

शायद ऐसी ही स्थिति के लिए जनकवि अदम गोंडवी ने कभी लिखा था...

"तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है

उधर जम्हूरियत का ढोल पीते जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है नवाबी है

लगी है होड़ - सी देखो अमीरी औ गरीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है

तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है"

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