गाँव में चौपाल सजी थी। बीच में सरपंच कल्लन काका पलथी मारे बैठे थे। अगल-बगल में मंगरू चाचा, खेदन, मंगल, श्याम समेत गाँव के सभी बड़े-बुजुर्ग और महिलाएं और बच्चे अपनी-अपनी जगह पकड़े हुए थे। कल्लन काका ने जब से सुना था कि राज्य की मुख्यमंत्री साहिबा पूरे प्रदेश भर में धडाधड अपनी और अपने प्यारे हाथी की मूर्तियाँ लगवा रही हैं तब से कल्लन काका को चैन से नींद भी नहीं आ रही थी। कल ही सपने में कल्लन काका ने देखा था ख़ुद को मंच पर बैठे हुए। फ़िर उनके नाम का अन्नाउंस होता है और कल्लन काका धीरे-धीरे मूर्ती की ओर बढ़ते हैं और फ़िर अपने ही हाथों अपनी मूर्ती का उदघाटन करते हैं। अपनी ही मूर्ती को सामने लगा देखकर और पूरे गाँव को उसे निहारते हुए देखकर कल्लन काका की आँखे भर आई. पता नहीं कब खो गए काका सपनो में और जब नींद खुली तो काकी उन्हें झकझोड़ कर उठा रही थीं। खेत में मवेशी घुस गए थे और काकी चाहती थी कि काका जाकर मवेशी भगाएं. काका क्या कहते-- कहाँ गाँव में अपनी मूर्तियाँ लगवाने की सोच रहे हैं और इधर काकी को खेतो की चिंता हुई जा रही है. काका को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन काका ने भी सोच लिया था कि अब तो पूरे गाँव में उनकी और उनकी प्यारी बकरी की मूर्ती लगकर ही रहेगी। लेकिन इसके लिए पैसा कहाँ से आयेगा? काका इससे तनिक भी बिचलित नहीं हुए और काका ने तय कर लिया गाँव के विकास के नाम पर जो फंड आता है मूर्तियाँ उसी से लगेगी। रही बात गाँव वालों को मनाने की तो उसी के लिए काका ने आज की मीटिंग बुलाई थी।
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कल्लन काका ने पूरी गंभीरता के साथ गांववालों को संबोधित करना शुरू किया--- देखिये भाइयो और बहनों। आप लोग जानते हैं दुनिया कहाँ से कहाँ बढ़ गयी, लोग कितने माडर्न हो गए लेकिन हम वहीँ के वहीँ हैं। लेकिन अब ये ज्यादा दिनों तक बरक़रार नहीं रहेगा और अब जल्द ही हमें गाँव की तस्वीर बदलनी होगी. इसके लिए हमने रोड मैप तैयार किया है॥हाँ॥रोडमैप! भाइयो हमने फैसला किया है कि गाँव को टूरिज्म हब बनायेंगे. गाँव भर में मूर्तियाँ लगाई जाएँगी और उसे देखने के लिए लोग यहाँ आएंगे. बाहर वाले यहाँ आयेंगे और यहाँ आकर तरह-तरह की चीजों की खरीददारी करेंगे और इससे हमारी आमदनी बढेगी. अगर विदेशी लोग घुमने आने लगें तो रूपये की बात छोडो डॉलर में पैसे आने लगेंगे और हमारा गाँव मालामाल हो जायेगा।
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काका के सामने बैठा बबलू खुद को नहीं रोक पाया और झट से सवाल कर दी-- लेकिन काका पहले से ही हमारे गाँव में इतनी मूर्तियाँ हैं अब किनकी मूर्तियाँ लगवाई जाएँगी? काका ने पूरे धैर्य का परिचय देते हुए उसका सवाल पूरा होने तक इंतजार किया और फिर बोल उठे- देख बेटा भगवान लोगों की मूर्तियाँ तो हर जगह हैं और अब राजनेताओं ने भी शहरों में अपनी मूर्तियाँ लगवानी शुरू कर दी है। लेकिन अभी गाँव के सरपंचो और मुखियाओं ने ये काम शुरू नहीं किया है। इससे पहले कि उनके दिमाग में ये आईडिया आये हमें इसकी शुरुआत अपने गाँव में कर देनी चाहिए और सबसे आगे रहते हुए अपने गाँव को टूरिज्म हब बना लेना चाहिए. गाँव के बाकी लोगों को काका की ये अंग्रेजी बात समझ में आ नहीं रही थी इसलिए सब केवल सर हिलाकर हाँ में हाँ मिलाये जा रहे थे. काका ने कहा- इसलिए मैंने फैसला किया है कि गाँव की भलाई के लिए मैं अपने ऊपर ये जिम्मेदारी लेता हूँ. मैं तैयार होता हूँ अपनी मूर्तियाँ लगवाने के लिए और तुम तैयार हो जाओ मालामाल होने के लिए. कल्लन काका का विरोधी जगतार बोलने को खडा हुआ लेकिन किसी ने उसे बोलने ही नहीं दिया. सब पर कल्लन काका के आईडिया का जादू चल चूका था।
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अगले दिन से काम शुरू हो गया। कल्लन काका ने सुबह नाई को बुलवा भेजा। नाई भी गाँव के विकास में योगदान देने से पीछे नहीं रहना चाहता था. दोपहर तक कल्लन काका को एकदम चमकाकर विजयी भाव में घर की ओर लौटा. कल्लन काका ने उसे भी समझा दिया था कि जब गाँव में विदेशी आने लगेंगे तो उसकी कमाई भी डॉलर में होने लगेगी। वैसे सपना केवल नाई ही नहीं देख रहा था कल की मीटिंग से लौटने के बाद खेदन भी अपने किराने की दूकान के विस्तार के बारे में अपनी बीवी राधा से गहन विचार-विमर्श में जुटा था. वो सोच रहा था जब विदेशी गाँव में आने लगेंगे तब वह चावल-आटा बेचना छोड़कर पिज्जा वगैरह की दुकान खोल लेगा. बबलू भी अब काका से खूब प्रभावित लग रहा था और सोच रहा था कि जब उनका गाँव विदेशियों के घुमने लायक बन जायेगा तब वो पेप्सी की दुकान खोल लेगा और साथ में सिम कार्ड और मोबाइल रिचार्ज का काम भी शुरू कर देगा. इन सब चीजों के बिना भला यहाँ आने वाले सैलानी कैसे रह पाएंगे. बबलू ने तो दुकान का नाम भी सोच रखा था अपनी गर्लफ्रेंड के नाम पर-- "चंपा टेलिकॉम एंड ठंडा सेंटर"... साहूकार चम्पकलाल की बांछे भी खिली हुई थी. इन सब लोगों को अपना व्यापार शुरू करना होगा तो पैसा कहाँ से आयेगा. तब अंगूठा लगवाने के लिए चम्पक साहूकार के दर पर हीं सबको आना होगा न. तब बढा देंगे ब्याज का दर. खुद सब कमाएंगे डॉलर में और मुझे कुछ भी नहीं मिलेगा ऐसा कैसे हो सकता है भाई॥
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खुद नहा-धोकर कल्लन काका ने अपनी बकरी को भी नहला दिया. आखिर काका के साथ गाँव भर में उसकी भी तो मूर्ती लगनी थी. नहा-धोकर जब काका गाँव में निकले तब उन्हें आभास हुआ कि टूरिज्म हब वाला उनका आईडिया वाकई हिट हो चूका है. काका जिधर से निकलते उधर ही लोग सलाम ठोकना शुरू कर देते. यहाँ तक कि उनके दुश्मन भी आज काका को इग्नोर नहीं कर पा रहे थे. अचानक काका के मन में एक प्रश्न उभर आया कि जब मूर्तियाँ लगने के बाद सैलानी नहीं आयेंगे तब ये गांववाले उन्हें जीने देंगे क्या. लेकिन काका इस सवाल से भी बिचलित नहीं हुए. उन्होंने तय कर लिया कि जब वक्त आयेगा तब देखा जायेगा. कह देंगे कि भाई आईडिया है फ़ैल हो गया, अब आईडिया के अन्दर घुसे थोड़े ही थे. जब बड़े नेता लोग अपनी और अपने हाथियों की मूर्तियाँ लगवाने के लिए करोडों खर्च कर सकते हैं तो काका अपनी और अपनी बकरी की मूर्तियाँ लगवाने के लिए लाखों रुपया भी खर्च नहीं कर सकते क्या...जय श्री राम की... देखा जायेगा..जो होगा. पहले मूर्तियाँ लगवाने का जुगाड़ तो किया जाये...
8 comments:
हाहाहा...कमाल का...ये तो अपने आप में एक विश्व रिकार्ड है भाई...
Achha hain sir humour achha tha ek chij jo kehna chahunga ki isme agar janta au vipakachiyon ka virodh bhi hota to achha hota
अरे आपने तो भिगो भिगो कर मारे है बहिनजी को नाम कल्लन का ही सूझा? बेचारा मारा जायेगा बहिन जी को सहन होगा कि किसी और के मन मे ये विचार आये? ना भाई हम तो इसमे हाँ नहीं मिलाते
बहुत सुन्दर और सटीक व्यंग है बधाई
अजी क्या बात कही आपने..मजा आ गया..पोल खुल गयी मनमानी करने वाले नेताओ की..वाह.वाह
अब अगर इन नेताओं को ऐसे समझ में नहीं आ रहा है तो फिर जनता को उनसे सवाल करना पड़ेगा की उनके पैसे को वो अपनी वाहवाही के लिए कैसे उड़ा सकते हैं...
बस अब ऐसा करो कि जूता भी भिजवा ही दो... भाई इत्ते जोर से तो मुलायम भी न मारेंगे। साधु ... तीखी है.. मिर्ची लगेगी।।
चलिए! हम भी अपने घर में अपनी मूर्ति लगवा लेते हैं.
बेहतरीन ..............! सुन्दर रचना !
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