कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में बनी प्रशासनिक सुधार आयोग ने देश के प्रशासनिक ढांचे में सुधार के लिए कई अनुसंशायें की हैं। जिनमें एक निश्चित समय अन्तराल पर अधिकारियों की फिटनेस और तमाम मोर्चों पर समीक्षा भी शामिल है. आयोग ने सिविल सेवा परीक्षा में बैठने वाले उम्मीदवारों के लिए नई उम्र सीमा तय करने की मांग की है. आयोग की माने तो सामान्य वर्ग से अब वे ही उम्मीदवार परीक्षा दे सकेंगे जिनकी उम्र २५ साल से कम हो. यानि कि उनके लिए सिविल सेवा में आने के लिए अब ३० साल तक का मौका न होकर २५ साल तक का मौका ही मिल सकेगा, उन्हें ३ बार परीक्षा देने का मौका ही मिल सकेगा। और जो सामान्य नहीं हैं यानि कि असामान्य वर्ग के लोग वे भी आयोग के फैसले से खुश नहीं होंगे. ओबीसी वर्ग के लोग अब ३३ के बजाय २८ साल और अनुसूचित जाती और जनजाति के लोग ३५ के बजाय २९ साल तक परीक्षा दे सकेंगे. ओबीसी वर्ग के लोगों को ५ बार परीक्षा में बैठने का मौका मिल सकेगा और अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के लिए ये मौका ६ बार का होगा.
जाहिर सी बात है कि प्रशासनिक सुधार के इस प्रयास में भी जातीय राजनीति की बू आ रही है. अगर सरकार को पिछडी जातियों के लोगों को समुचित प्रतिनिधित्व दिलाना ही है तो इसके लिए उनके लिए सीटें आरक्षित हैं और इसके लिए अलग से उन्हें ज्यादा मौके और उम्र की छूट देने की कोई जरूरत मालूम नहीं होती. अगर सामान्य वर्ग का आदमी २५ साल तक ही परीक्षा दे सकता है तो फ़िर दूसरे को इससे ज्यादा का मौका क्यों. क्या आयोग ऐसा मानता है कि आरक्षित वर्ग के आदमी के दिमाग में कोई चीज सामान्य वर्ग कि अपेक्षा कुछ साल बाद आती है. या फ़िर इस वर्ग के लोगों को फ़ेल होने के कुछ ज्यादा मौके देने लायक मानती है. ये पहले साफ़ होना चाहिए. आप अगर किसी को कोई सुविधा देते हैं तो उसके कारण को भी साफ़ करना चाहिए. जैसे मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग लोगों को इस आधार पर आरक्षण मिलता है कि वे सामान्य लोगों से समान मुकाबला नहीं कर सकते तो इस बात को असामान्य वर्ग के लोगों के लिए माना जाना चाहिए. किसी परीक्षा में पास होने के लिए सामाजिक पिछडापन कोई मसला नहीं हो सकता उसके लिए पढ़ाई करनी होती है. इस आधार पर किसी को वैशाखी नहीं दी जानी चाहिए. और अगर वाकई देश के प्रशासनिक ढांचे में सुधार करना है तो वैशाखी वाले लोगों को आगे करने की प्रवृति से बचना होगा. इसमें वही लोग लिए जायें जिनमे प्रशासन चला पाने की कुव्वत हो. दूसरी बात ये कि जो लोग पिछले दशकों में आरक्षण की मलाई खाकर मोटे हो गए हैं उनसे भी ये वैशाखी अब छीन लेनी चाहिए. अगर वाकई आप प्रशासन में सुधार लाना चाहते हैं तो... वरना आप इसे प्रशासनिक सुधार आयोग की जगह राजनीतिक रणनीति सुधार आयोग भी कह सकते हैं.
और अंत में...अगर सामान्य वर्ग से अलग वर्ग के लोगों को असामान्य का संबोधन सुनना बुरा लगा हो तो इसके लिए माफी...
2 comments:
well written dost.... ab kya kahen unke bare me jinhe ye lagta hai ki all General category people have achieved everything and they don need any more opportunities.....
सिर्फ यही तो इंडिया नहीं है भाई .
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