Friday, 12 September 2008

चलो एक दिन कुछ पॉजिटिव सोच लें...

लगातार सुबह से ही कई टीवी चैनलों, समाचार वेबसाइट्स और अखबारों में खबरें आ रही थी। पहले तो मुझे समझ में नहीं आया कि माजरा क्या है लेकिन जब उत्सुकता बढ़ी तो हमने इस ख़बर की तह में जाने का फ़ैसला किया। पता चला कि ये सब १३ सितम्बर को लेकर हो रहा है। दरअसल सकारात्मक सोच को बढ़ावा देने के लिए पश्चिमी देशों में हर साल 13 सितंबर को पाजिटिव थिंकिंग डे (सकारात्मक सोच दिवस) मनाया जाता है। जिस दिन लोग सही सोच के साथ दिन शुरू करते हैं और सामाजिक कल्याण में भागीदारी करते हैं। इसे वहां के लोग जीवन पर लगातार हावी हो रहे नकारात्मकता पर काबू पाने के हथियार के रूप में देख रहे हैं। इसे हमारे देश की मीडिया ने भी इस बार खूब तवज्जो देनी शुरू की है। हो सकता है पिछले सालों में भी हमारी मीडिया ने १३ सितम्बर को मनाया हो लेकिन मेरे लिए इस दिवस का अनुभव पहला है। इमानदारी से कहूँ तो जितना दिवस पश्चिम के लोग मानते हैं उतना मना पाना हमारे बस की बात नहीं है। यहाँ तक कि वे लोग तो फादर्स डे, मदर्स डे और न जाने ऐसे ही कितने दिवस मनाते हैं। अब इसके लिए तो एक देरी रखनी पड़ेगी और किन लोगों को साल के किस तारीख को याद करना है इसकी पूरी सूची बनानी पड़ेगी।

वैसे जहाँ तक मेरा मानना है कि पॉजिटिव थिंकिंग के लिए हमारे देश में कई सारे दिवस पहले से ही फिक्स हैं। हमारे यहाँ जीतने भी त्योहार हैं सब इसी सोच पर आधारित हैं। इन दिनों पर लोगों को पॉजिटिव थिंकिंग रखना पड़ता है, पॉजिटिव लाइफ जीना पड़ता है और सब-कुछ पॉजिटिव ही करना पड़ता है। इस दिन पॉजिटिवीटी अनिवार्य हो इसके लिए धार्मिक डर भी होता है। लेकिन ये बात पश्चिम के पाजिटिव थिंकिंग डे में नहीं है। वैसे एक चीज इस डे में अच्छी है। भारत में ज्योतिष हस्तरेखा, रूद्राक्ष आदि का सहारा लेकर जो अपने जीवन में पॉजिटिवीटी लाना चाहते हैं उनके बनिस्पत तो ये दिवस मनाना ज्यादा व्यावहारिक ही कहा जाएगा। हो सकता है ये समाज के लिए नई परिपाटी गढ़ रही हो... और आने वाले समय में समाज कि दिशा तय करे...समय के बदलते रुख पर किसी कवि ने सच ही कहा है...
"जानें क्या रौंदें
क्या कुचलें
इनकी मनमानी
लगता है
अब तो सिर तक
आ जाएगा पानी
आने वाला कल
शायद इनके
तिलिस्म तोडे।

No comments: