Sunday, 18 May 2008

आतंकवाद पर रक्षात्मक हो चुके हैं हम?

अपनी शांत जीवनशैली के लिए मशहूर जयपुर शहर में १३ मई को ७ ब्लास्ट हुए, ८० के आसपास लोग मारे गए और दर्जनों लोग घायल हुए। मरने वालों में हिंदू-मुस्लिम, पुरूष-महिला, बच्चे-बड़े सब थे। हर आतंकी हमले के
बाद जैसा की होता है वैसा ही हुआ। सभी बड़े नेताओं ने निंदा की, खेद जताया, घायलों और घटना स्थल को देखने के लिए बड़े-बड़े नेताओं के दौरे हुए, खुफिया विभाग ने कहा की हमने पहले ही सूचना दे दी थी, विपक्ष ने कहा की खुफिया विभाग की असफलता सरकार की असफलता है और ऐसे ही हमले के लिए सबने एक-दुसरे पर लापरवाही का आरोप मढ़कर अपनी साख बचने की व्यवस्था कर ली। तमाम राजनितिक बयानबाजी के बिच उन लोगों की आवाज दब सी गई, जिन्होंने बिना किसी कारण के अपने लोगों को खो दिया। उनका इन तमाम दों-पेंच से कोई वास्ता भी नहीं था। वैसे भी हमारे देश में अब इतने आतंकी हमले होने लगे हैं कि लोगों पर उसका असर बस कुछ ही देर के लिए होता है। जिस शहर में जब हमला होता है, baaki shaharon के लोगों के लिए वो महज कुछ देर के लिए afsos का विषय होता है। लोग ये जानते हैं कि उनकी सुरखा या तो आतंकवादियों के हाथ में है या फ़िर भगवान् के। अगर आतंकी मरने के लिए उन्हें नहीं चुनते हैं तो वो बच गए या तो फ़िर भगवान् कि कृपा से ही कोई बच सकता है। सरकार कि ओर से टैब तक कुछ हो पाना सम्भव नहीं है जब तक कुछ हो न जाए। और अगर हो भी जाए तो सरकार आंसू बहने के अलावा कर ही क्या सकती है...

जयपुर में हुए हमले के वक्त प्रधानमंत्री जी विदेश दौरे पर थे और उन्होंने भी चिंता जताते हुए कह डाला कि आतंकवाद पर सभी दलों को साथ-साथ आना पड़ेगा, प्रधानमंत्रीजी ने यहाँ तक कह डाला कि देश में ऍफ़ बी आई की तरह एक संघीय जांच एजेन्सी की जरूरत है। यहीं से असल तमाशा शुरू हुआ। सरकार में शामिल वामपंथी दलों ने संविधान का वास्ता देकर संघीय एजेन्सी के आईडिया पर हमला बोला तो विपक्षी बीजेपी ने फ़िर पोटा लागू करने की मांग कर डाली। बीजेपी का कहना था कि केवल संघीय जांच एजेन्सी बनाने से कुछ नहीं होने वाला बल्कि पोटा जैसा कडा क़ानून ही आतंकवाद पर लगाम लगा सकता है। बीजेपी का साफ कहना था कि बिना सख्ती के एजेन्सी का क्या काम। आडवाणी जी कर्णाटक में चुनाव प्रचार के लिए गए थे, वहाँ उन्होंने आतंकी हमलों के लिए केन्द्र सरकार को निशाना बनाया। अडवानी जी ने आंकडे भी गिनाये और कहा-- जब से ये सरकार सत्ता में आई है केवल एक वर्ग को खुश रखने के लिए आतंकवाद पर लचीला रुख अपना रही है। ४ सालों में इतने हमले हुए। सरकार एक भी आरोपी को पकड़कर आरोपपत्र दाखिल नहीं कर सकी। उल्टे इस सरकार ने पोटा को ख़त्म कर दिया और बीजेपी शासित राज्यों के बनाये सख्त कानून को भी पास नहीं होने दे रही है...

इन तमाम राजनितिक बयानों के बीच उस आम जनता के पास कोई ऐसा उपाय नहीं है जो उसे इन आतंकी हमलों से बचा सके। ये शायद उसकी नियति बन गई है कि हर हमले तक इस बात का इंतज़ार करना कि कौन इस बार हमले का शिकार बनेगा। अपने नंबर का इंतज़ार करना और फ़िर जख्मी होकर भाषण सुनना यही हमारी नियति बन चुकी है। हम आतंकवाद पर, अपनी रक्षा के लिए भी आक्रामक रुख नहीं अपना सकते और बस इंतज़ार कर सकते हैं अपनी बारी आने का॥

1 comment:

samshad ahmad said...

हम आतंकवाद पर, अपनी रक्षा के लिए भी आक्रामक रुख नहीं अपना सकते नहीं अपना रहे इसलिए ही बार बार लगातार आतंकी हमले हमें झेलना पड़ते हैं. पता नहीं कब हमारी सरकार aakramak रुख apnaygi