कहते हैं भारत विविधताओं से भरा देश है, विविध लोग...विविध नज़ारे और विविध प्रकार की बातें.....हर बार जिंदगी का नया रूप और नई तस्वीर....लेकिन सब कुछ हमारी अपनी जिंदगी का हिस्सा...इसलिए बिल्कुल बिंदास...
Monday, 21 April 2008
दुनिया की भीड़ में!
हम सब दुनिया की भीड़ में शामिल हैं जो सुबह से लेकर शाम तक कोई-न-कोई काम लेकर यहाँ से वहाँ दौड़ती रहती है। सड़क, गाडियाँ, रेड लाईट ये सब इस भीड़ की जिंदगी की रोजमर्रा में शामिल है। लेकिन क्या कभी आपने इस भीड़ से ख़ुद को अलग कर कहीं दूर बैठकर इस भीड़ को देखा है। लोगों को शायद ये अटपटा लगे लेकिन मुझे इस तरह के अनुभव लेने की आदत है। इस अनुभव पर मैं अपनी एक कविता के कुछ अंश नीचे दे रहा हूँ।
कभी देखिये
भीड़ से अलग होकर
दुनिया की भीड़ को
सड़क पर बेतहाशा
दौड़ती-भागती भीड़ को
सुबह से शाम तक
बस भागती हुई भीड़ को!
लेकिन ये भीड़ कभी रूकती नहीं है। दुनिया के हजारों-लाखों शहर और ग्रामीण इलाकों के सडकों और चौराहों पर पर यह भीड़ उतनी ही शिद्दत से दौड़ रही है। फर्क इतना है कि आज हम इस भीड़ का हिस्सा हैं, कल कोई और था और आने वाले कल में इस भीड़ में कोई और शामिल होगा...
आगे.........
कभी नहीं रूकती ये
बस थमती है
आधी रात को
केवल एक पहर के लिए
और फ़िर चल पड़ती है
सुबह होते ही।।
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1 comment:
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