मेरे गांव के लोकप्रिय सरपंच कल्लन काका इन दिनों नई चिंताओं से घिरे हुए
हैं। देश में सेकुलर कहलाने की होड़ लगी हुई है। जिसे देखों वहीं खुद को
सेकुलर कहलाने में लगा हुआ है और अबतक किसी ने उन्हें सेकुलर नहीं कहा। आज
अचानक सुबह चौपाल पर बैठे-बैठे कल्लन काका के दाहिने हाथ मोहन ने विचार
दिया कि क्यों नहीं जल्दी से जल्दी खुद को सेकुलर घोषित करवा ही लिया जाए।
अब सवाल उठा कि किससे इसकी घोषणा करवाई जाए। कल्लन काका के राजनैतिक
सलाहकार पप्पू पांडे ने अपनी जुबां खोली--भईया राजनेताओं की इन दिनों
लोकप्रियता थोड़ी कम है और उसमें बेदाग छवि के राजनेता खोजने में काफी वक्त
लग सकता है। क्रिकेटर भी ठीक नहीं रहेंगे क्योंकि इन दिनों फिक्सिंग के
फेर में कईयों के नाम बदनाम हो गए हैं। फिर कुर्सी से उछलते हुए लोचन ने
सलाह ही कि इसके लिए फिल्मी दुनिया से किसी को लाया जाए...आने वाला वक्त
सनी लियोनी जैसी अदाकाराओं का हैं इसलिए उन्हें अप्रोच किया जाए। काका के
दाए बैठे मोहन ने कहा कि इतनी बड़ी हस्ती के पास हमारे लिए वक्त कहां से
होगा सो मेरे विचार में गांव की डांस पार्टी की हिरोईन चंपा से ही कल्लन
काका को सेकुलर कहलवा दिया जाए..युवाओं में वह काफी लोकप्रिय भी है। अभी कल
ही की बात है उत्तर टोले के रमेश ने चंपा की बुराई करने पर अपनी वीवी को
क्या दुरूस्त किया था। पड़ोसियों के हस्तक्षेप के बाद ही हंगामा शांत हो
पाया था। कल्लन काका को ये सुझाव पसंद आया..इसके लिए रविवार का दिन तय हुआ
क्योंकि इस दिन ज्यादा से ज्यादा लोग गांव में रहेंगे। कार्यक्रम की
तैयारियां शुरू हो गईं। रविवार का दिन भी आ गया। कल्लन काका और उनकी पूरी
कोर टीम मंच पर थी और तभी मुख्य अतिथि के रूप में चंपा का स्टेज पर आगमन
हुआ। चंपा ने अपनी अदाओं के साथ भीड़ की ओर हाथ हिलाकर अभिवादन किया...वहां
मौजूद युवाओं का उत्साह और जोश मानो आसमान पर चढ़ता नज़र आया। आते ही चंपा
जी ने कहा कि मेरे प्रिय गांववासियों आज मै आपके प्रिय नेता और जनसेवक
कल्लन जी के सौजन्य से आपके बीच हूं..मुझे आपके सामने लाकर उन्होंने साबित
कर दिया है कि वही असली सेकुलर हैं। इसके साथ ही जनता की भीड़ में खड़े
कल्लन काका के समर्थकों के बीच से नारा गूंज उठा..."आज का असली सेकुलर
कौन..कल्लन काका..कल्लन काका"..मंच पर बैठे कल्लन काका का सीना गर्व से
चौड़ा हो गया और उन्होंने तय कर लिया कि इस बार वे सरपंच के चुनाव में अपनी
सेकुलर छवि और चंपा फैक्टर के साथ युवाओं के बीच जाएंगे। उनके समर्थक और
रणनीतिकार भी खुश थे कि इस बार के चुनाव का एजेंडा तय हो गया और मीटिंग में
बेवजह की माथापच्ची नहीं करनी पड़ेगी।
कहते हैं भारत विविधताओं से भरा देश है, विविध लोग...विविध नज़ारे और विविध प्रकार की बातें.....हर बार जिंदगी का नया रूप और नई तस्वीर....लेकिन सब कुछ हमारी अपनी जिंदगी का हिस्सा...इसलिए बिल्कुल बिंदास...
Tuesday, 18 June 2013
Friday, 24 May 2013
इस देश में ईमानदारी की ऐसी की तैसी...!
आईपीएल को लेकर चारो ओर चिल्ल-पौं मची हुई है। क्या क्रिकेट या आईपीएल
इतना ज्यादा अहम हो गया है इस देश के लिए..जिसे देखिए वही अपनी बात रखे जा रहा
है..बंद कर दो..सजा दे दो..पकड़ लो..कुछ लोग सट्टेबाजों, खिलाड़ियों आदि के बीच धन
के लेन-देन की राशि सुनकर ही हैरान है..बाप रे बाप एक-एक बॉल के लिए 40-40
लाख..एक-एक खिलाड़ी करोड़ो-करोड़ ले रहा है..एक खिलाड़ी पकड़ाया है शायद वह रोज
सट्टेबाजों से लड़कियां मंगवाता था...फिल्मी दुनिया से जुड़ा एक छोटा-मोटा
अभिनेता..या शायद बुकी या फिर जैसा रिपोर्टों में आ रहा है लडकियों का
सप्लायर...उसने पूछताछ में माना कि अबतक 17 लाख वह कमा चुका है इस धंधे से..सुनकर
लोग हैरान है..जिस देश में रोजगार गारंटी के तहत दिन-भर पसीना बहाकर अगर ठेकेदार
और स्थानीय नेता की वसूली से बच गए तो 120 रुप्या मिलता हो..या फिर योजना आयोग 32
रुप्ये में रोज का खर्च चलवाने की बात मानता हो वहां खेल में लाखो-करोड़ो की बात
सुनकर सब हैरान है...मैं खुद क्रिकेट खेलना या देखना पसंद करता हूं लेकिन आईपीएल
एकदम पसंद नहीं..एक भी मैच या कहें कि एक भी ओवर कभी नहीं देखा..चैनल बदलते वक्त
एक-दो बॉल कभी भले ही दिख जाता हो...विश्व कप या फिर दो देशों के बीच मैच देख लेता
हूं..अगर यही हाल रहा तो पूरी तरह क्रिकेट से तौबा ही करना पड़ेगा।
जेंटलमैन गेम में पैसे के लेन-देन के ये आंकड़े वैसे इस देश की
वर्तमान हालात को देखते हुए इतनी ज्यादा भी नहीं है। गरीबी की मार झेल रही इस देश
की जनता पिछले कुछ सालों में लाखो-हजार करोड़ के घोटालों के आंकड़े सुनकर ऐसे ही
हैरान-परेशान है। कोई भी घोटाला आजकल दस-बीस हजार करोड़ से कम की नहीं होती। हाल
ही में जब एक मंत्री जी को भांजे द्वारा 90 लाख लेते पकड़े जाने पर अपना मंत्रिपद
गंवाना पड़ा तो लोगों ने मजाक उड़ाया..कैसे नेता हैं जो लाखों की रिश्वत में ही पकड़े
गए...वैसे आजकल शरीफ लोगों की भी शामत आई हुई है। घर में पत्नियां फब्तियां कसती
रहती हैं। अजी बड़े-बड़े फेंकते हो..ऑफिस में ये कर लिया—वो कर लिया और कमाकर लाते
हो हजारो में...।..यहां देखों 9वी-10वी पास लड़के क्रिकेट खेलकर साल-दो साल में
करोड़ो-करोड़ कमाते जा रहें हैं। कुछ करते क्यों नहीं... अब बेचारे भला क्या जवाब
दें।
Wednesday, 1 May 2013
उफ् ये लोकतंत्र--इधर सांपनाथ ऊधर नागनाथ
दुनिया के इस तथाकथित सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में क्या अब भी लोकतंत्र का कोई मतलब रह गया है? सत्तारूढ़ दल घोटालों पर घोटाले करता जा रहा है। अब उसे जनता, न्यायपालिका या नैतिकता का कोई डर नहीं है। विपक्ष को मुद्दे उठाने आते नहीं। सच कहें तो जनता को विपक्ष से भी कोई अच्छा काम करने की उम्मीद नहीं रह गई है। ऐसे में क्या देश के युवाओं का झुकाव किसी नए तरह के नेतृत्व के विकल्प की ओर हो सकता है? आजादी के बाद के छह से अधिक दशक से ये देश लोकतंत्र के नाम पर चुनाव, चुनावी रैलियां, भाषण, आश्वासनों के ढेर, पैसे बांटकर अपने पक्ष में वोट डलवाते आ रहे राजनीतिक दलों के पैंतरें, गरीबी हटाओं जैसे बोर करने वाले नारे सुन और देखकर बोर हो चुका है। क्या अब वक्त आ गया है इस देश में पुराने तरह की राजनीति को नकार देने की?
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