कहते हैं भारत विविधताओं से भरा देश है, विविध लोग...विविध नज़ारे और विविध प्रकार की बातें.....हर बार जिंदगी का नया रूप और नई तस्वीर....लेकिन सब कुछ हमारी अपनी जिंदगी का हिस्सा...इसलिए बिल्कुल बिंदास...
Wednesday, 31 December 2008
नए साल की शुभकामनायें...
आप सबको नए साल की शुभकामनायें--- ये नया साल आपके जीवन में नई खुशियाँ लायें और प्रगति के नए पथ पर लाये...
Tuesday, 30 December 2008
ये पहला युद्ध नहीं है...ये चलता रहेगा!
"युद्ध जो आ रहा है
पहला युद्ध नहीं है।
इससे पहले भी युद्ध हुए थे।
पिछला युद्ध जब खत्म हुआ
तब कुछ विजेता बने और कुछ विजित।
विजितों के बीच आम आदमी भूखों मरा
विजेताओं के बीच भी मरा वह भूखा ही।"
आज हम फ़िर भारत-पाकिस्तान के बीच लड़ाई की ख़बरों के माहौल में जी रहे हैं. शायद लड़ाई हो ही जाए और शायद लड़ाई न हो. लेकिन आम आदमी की समस्याएं कभी ख़त्म नहीं होंगी. अगर लड़ाई होगी तो वो लड़ाई में मारा जाएगा और जो लड़ाई से बचेगा वो भूख से मरेगा. लेकिन अगर लड़ाई नहीं होगी तो वैसे भी आम आदमी भूख से मारा जा रहा है. चाहे वो गाजा पट्टी का आदमी हो या भारत का या फ़िर आपसी संघर्ष में उलझे अफ्रीका के लोग सब मरने-मारने पर उतारू है. उसे उकसाने वाला सुरक्षित है और वो ख़ुद को इस संघर्ष का आसान शिकार होता हुआ देखने को मजबूर है. लेकिन कहते हैं न कि जिंदगी चलने का नाम है और ये कभी रूकती नहीं. अपना ये आम आदमी भी इसी विचारधारा पे चलता है और ऐसे ही चलता रहेगा...
Sunday, 28 December 2008
रेव पार्टी करने वालों को नहीं दिखा सकेगी मीडिया...
नए साल पर मचने वाले धमाल पर नज़र गड़ाए मीडिया के लिए भी ये नया साल कुछ मजेदार नहीं होने जा रहा है। महाराष्ट्र की सरकार ने रेव पार्टी में शामिल मस्तमौलों की मौज-मस्ती टीवी पर दिखाने पर पाबन्दी लगा दी है. सरकार का कहना है कि इस तरह से मीडिया रेव पार्टी करने वाले "निर्दोष बच्चों" को दिखाकर ठीक नहीं कर रही है इसलिए मीडिया अब ऐसे नीर-दोष बच्चों की कवरेज़ नहीं कर पायेगी. अब आप ही बताइए कि सरकार नए साल की कवरेज़ ही नहीं करने देगी तो खबरों की तलाश में घुमने वाले पत्रकार कहाँ से मसालेदार ख़बर ला पाएंगे. और टीवी के परदे सूने ही दिखाई देंगे.
इधर मुंबई में हमेशा मुगदर भांजते रहने वाले मशहूर चाचा-भतीजा इस बार कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं. वहां आतंकी हमले के बाद से उनको धमाल मचाने का मौका नहीं मिल पा रहा है. चाचा तो कभी-कभी देशभक्ति की नाल थामकर अपनी गोली दाग भी देते हैं लेकिन अपने भतीजे साहब उसी समय से गायब हैं. उनके लिए भी नया साल फ़िर से नई शुरुआत का मुहूर्त साबित हो सकता है. वे नए साल पर फ़िर से धमाल मचाने मैदान में उतर सकते हैं और इस बार शायद संस्कृति की दुहाई देकर बाहरी(देशी-विदेशी मस्तमौला और वहां की सरकार की नज़र में निर्दोष बच्चे) लोगों की ठोक-बजाई करने लगें. उनके लिए ये गेम सेफ भी होगा. अब मौज-मस्ती करने वाले लोग आतंकवादी थोड़े हैं जिनसे भइया को डर लगेगा. भाई जो मौज-मस्ती करने आएंगे वे तो बस भइया से पिटने लायक ही होंगे. अब हमें तो इंतजार है कि कब भइया अपने दरबे से बाहर निकले और हमारे नए साल को मसालेदार बनाये...इस बार तो रेव पार्टी का फ्रंट भी खुला होगा. मीडिया कवरेज़ पर रोक की वजह से दुनिया उनकी नीर-दोषता भी नहीं देख सकेगी...
चलो अमेरिका की बेरोजगारी ख़त्म हो गई...
Thursday, 25 December 2008
ठेकेदारी. धनउगाही.. चंदा... राजनीति....वगैरह-वगैरह
देश के इन दोनों ही हिस्सों में इस कौम के लोग रहते हैं। इनके पास न तो धन-बल की कोई कमी होती है और न ही इनके पास व्यवस्था में पैठ की कोई कमी होती है. ये लोग मीडिया को अपने पक्ष में इस्तेमाल करना जानते हैं. गाँव में रहने वाले इस कौम के लोग आजकल राजनीति में धड़ल्ले से शामिल हो रहे हैं. क्यूंकि इन्हें ये मालूम है कि देश के संसाधनों का अगर अपने पक्ष में इस्तेमाल करना है तो पहले व्यवस्था को अपने हाथ में करो. राजनीति में ऐसे लोगों की पूछ भी कम नहीं है. जनता भले ही चौक-चौराहों पर इन बाहुबली लोगों को बुरा कहें लेकिन जब मतगणना होती है तो यही लोग विजय पताका फहराते दिखते हैं. अगर आपमें बाकि लोगों को ठिकाने लगा पाने और ख़ुद को ऐसे ही अन्य लोगों से बचा पाने की कुव्वत है तभी आप राजनीति में सफल हो सकते हैं और विधान सभाओं और संसद तक पहुँच सकते हैं. हमारे गाँव में कहा जाता है कि अगर आपके पास बाहुबल है तभी राजनीति में सफल हो सकते हो वरना वो धोती-कुरता और खद्दर के कुरते वाली राजनीति का समय अब कहाँ रहा. जनता ऐसे लोगों से परहेज नहीं करती है और ऐसे लोगों के हाथों में अपना भविष्य सुरक्षित मानती है. शायद जनता को ऐसा लगता है कि यही वो लोग हैं जो अपनी रक्षा करने में सक्षम हैं और इन्हीं के हाथों में अपना जीवन सौंपा जा सकता है. शायद इसी लिए जनता ऐसे लोगों को राजनीति में आगे करती है और इतना ताकत देती है कि विकास योजनाओं के लिए आए करोडों कि राशि को लूटकर मालदार बनते जा रहे ठेकेदार और अन्य अधिकारीयों से चन्दा वसूली कर सकें. ऐसे लोग इस विचारधारा में भरोसा रखते हैं कि भाई जब देश को लूट ही रहे हो तो सबको मिलकर खाना चाहिए. आख़िर हम लोकतंत्र में रहते हैं और देश के साथ-साथ यहाँ की मलाई पर भी सबका बराबर हक़ होना चाहिए.
देश में इस विचारधारा को आगे बढ़ाने में लगे इस कौम के महापुरुषों की सबसे बड़ी दुश्मन अपनी मीडिया है. जब ऐसे लोग अपनी "मेहनत और परिश्रम" के बल पर चुनाव जीतकर विधान-सभा और संसद तक पहुँच जाते हैं तो मीडिया इनके पीछे पड़ जाती है. दावेदारी होने के बाद भी मीडिया के दबाव में ऐसे लोग मंत्री पद पर नहीं पहुँच पाते. अगर मीडिया इनके रस्ते में रोड़ा न बने तो देश की मुख्यधारा में भी ऐसे बाहुबल, चंदा वसूली और अन्य तकनीक अपनाकर आगे बढ़ने वाले लोगों की अच्छी-खासी संख्या हो जायेगी. और पूरा देश खुशहाल और बाहुबली हो जाएगा. तब शायद...
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......बहुत कुछ हो जाए...
Tuesday, 23 December 2008
वाइन, चाकलेट से दिमाग हमेशा रहता है तेज?
मैंने अपने आस-पास काफ़ी बड़ी संख्या में लोगों को शराब पीते हुए देखा है वाकई चढ़ने के बाद कइयो का दिमाग तेज काम करने लगता है। मेरे एक परिचित जो कि आम तौर पर हिन्दी में बात करते हैं शराब पीने के बाद अक्सर अंग्रेजी में बात करने लगते हैं. इसी तरह मेरे एक अन्य मित्र कहते हैं कि शराब पीने के बाद उनका कांफिडेंस बढ़ जाता है. लेकिन कई लोगों के साथ शराब कुछ अलग असर भी दिखाता है. पीने के बाद कई तो सड़क किनारे गड्ढे में पड़े हुए मिलते हैं. हो सकता है कि जिन वैज्ञानिकों ने शोध किया हो उनके पास प्रयोग के लिए लाइ गई शराब में कुछ ऐसा तत्व हो जो अलग परिणाम दे लेकिन सबको तो इस तरह का अद्भुत शराब मिल नहीं सकता. उन वैज्ञानिकों के लिए मैं एक जानकारी देना चाहूँगा कि हमारे देश में हर साल सैकड़ों लोग जहरीली शराब पीकर मर भी जाते हैं और इससे भी कई गुना ज्यादा लोग शराब पीकर अपनी जिंदगी, अपना परिवार सबकुछ बर्बाद कर लेते हैं. उन्हें भी इन वैज्ञानिकों के शोध से कुछ फायदा हो सकता है.
हमारे देश में शराब, सिगरेट, गुटखा आदि का सेवन एक बुरी आदत के रूप में मानी जाती है। लेकिन इसपर रोक नहीं है। देश में इन चीजों की खुलेआम बिक्री होती है. शराब की बिक्री के लिए कई दिशा निर्देश जारी किए जाते है. अपने देश में कई सारे ड्राई डे तय किए हैं. अब ये कितने कारगर होते हैं ये बता पाना तो मुश्किल है. क्यूंकि अगर मुझे शराब पीना है और मालूम है कि कल ड्राई डे है तो मैं अपना जुगाड़ आज ही कर लूँगा. ये भी व्यवस्था से निकला हुआ उपाय है. इसके आलावा पिछले दिनों सार्वजानिक स्थानों पर धुम्रपान करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया. लेकिन इसके उत्पादन पर किसी भी तरह का प्रतिबन्ध नहीं है. अगर सरकार इसे ग़लत मानती है तो इसके उत्पादन पर भी लगाम लगानी चाहिए. इसके बिना इसपर रोक का नाटक बेमानी है और केवल ख़ुद को धोका देने जैसी बात है.
जाहीर है ऐसे हालत में शोध करने वाले वैज्ञानिकों का मार्केट बढ़ जाएगा. अगर इन चीजों को प्रतिबंधित किया जा रहा है और वैज्ञानिक कहे कि इन चीजों के इस्तेमाल से दिमाग तेज होता है तो जाहीर है पीने वालों को अपने समर्थन में कुछ कहने को मिल जाएगा. फ़िर तो ये लोग कह पाएंगे कि शराब वगैरह का सेवन आज कि दुनिया में बहुत जरूरी है. ज्ञान आधारित दुनिया में सर्वाइव करने के लिए दिमाग बढ़ाना जरूरी है और ये तभी हो पायेगा जब शराब का सेवन किया जाएगा. दुनिया भर में इस खोज का समर्थ करने वाले इतने मिल जायेंगे कि मजबूरन इन वैज्ञानिकों को नोबल पुरस्कार देना पड़ जाएगा.
क्या आतंकवाद पाकिस्तान की सरकारी नीति में शामिल है...
पाकिस्तान की मीडिया में इस ख़बर के आने के बाद भी कि एकमात्र जिन्दा पकड़ा गया आतंकी पाकिस्तान के फरीदकोट गाँव का है वहां के सियासतदान बेशर्मी से इसे नकार रहे हैं. जब विपक्ष के नेता नवाज शरीफ ने कहा कि कसब पाकिस्तान का है तो वहां की सूचना मंत्री ने कहा कि इस मामले पर पाकिस्तान के सभी दलों को एकता दिखानी चाहिए. अब भला सूचना मंत्री से पूछा जाना चाहिए कि क्या वो आतंकवादियों की हिमायत में पाकिस्तान की एकता की बात कर रही हैं या फ़िर वहां आतंकवाद सरकारी नीति में शामिल है. ये बात अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान से साफ़ शब्दों में पूछना चाहिए. अमेरिका और तमाम पश्चिमी देशों के जो नेता ये कहते हुए रोज दौरे पर आ रहे हैं कि उनका प्रयास भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव को कम करना है. लेकिन कोई इनसे सवाल पूछे कि आख़िर इस तरह कैसे तनाव कम होगा. अगर तनाव को कम ही करना ही है तो विश्व को पाकिस्तान पर आर्थिक और अन्य तरह से लगाम लगानी चाहिए ताकि वो अपनी गलती को मानने को मजबूर हो जाए। पाकिस्तान को हथियार बेचने वाले देशों को भी अपने व्यापार से ज्यादा इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि कैसे पाकिस्तान को आतंकवादी पैदा करने वाला देश बनने से रोका जाए. पाकिस्तान को इस बात के लिए मजबूर किया जाए कि वो आतंकवाद का व्यापार बंद कर रोजी-रोटी के लिए कोई और पेशा चुने...और भारत को भी अब धैर्य का रास्ता छोड़ पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए तैयार होना पड़ेगा. वरना ऐसे ही पाकिस्तान के लोग पैसे के लिए फिदायीन बनते रहेंगे और भारत पर आतंकी हमले होते रहेंगे...
Saturday, 20 December 2008
विरोध के सबसे सस्ते हथियार का जनक कौन...शायद जैदी...
जैदी वाली घटना के बाद तो अमेरिकी मीडिया में भी बुश द्वारा इराक में अपनाई गई नीति पर सवाल उठने लगा है. हालाँकि इस सस्ते हथियार की सफलता के लिए जैदी को भारी कीमत चुकानी पड़ी है. हिरासत में उसे इतना मारा गया कि उसकी हड्डी-पसलियाँ तक टूट गई. इस मामले की सुनवाई कर रहे जज ने ये बातें मीडिया को बताई. बुश पर जूता फेंकने वाला ये युवा पत्रकार आज दुनिया के उन लोगों के लिए किसी हीरो से कम नहीं हैं जो ये पसंद नहीं करते कि अमेरिका दुनिया पर अपनी दादागिरी दिखाए. दुनिया भर में इस घटना को लेकर प्रतिक्रियाएं आई. लोगों ने अपनी-अपनी तरफ़ से इस घटना की तारीफ की या फ़िर विरोध किया। ब्राजील के राष्ट्रपति हुगो शावेज ने जैदी को एक बहादुर और साहसी नौजवान बताया तो पूरे अरब जगत ने भी इस कदम को एक साहसी कदम बताया. बहरीन के एक अमीर ने अपनी मर्सिडीज कार उस पत्रकार को इनाम में देने की घोषणा की तो इराकी फुटबॉल टीम के एक पूर्व खिलाड़ी ने बुश की ओर चलने वाले जूते को नीलाम करने की घोषणा कार दी। लेकिन क्या अमेरिका इसे बर्दाश्त कर सकता था कि कोई कल को इस जूते को कहीं प्रदर्शनी में रखकर ये कहे कि देखो ये वही जूता है जो सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका के राष्ट्रपति पर फेंका गया था। जाहीर है अमेरिका इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता था और उसने किया भी नहीं। अमेरिकी सैनिकों ने उस पत्रकार को हिरासत में तो तोडा ही उसके जूते को भी सुरक्षा जांच के नाम पर नष्ट कर दिया। कहा गया कि ये देखने के लिए कि उस जूते में कहीं बम तो नहीं है सुरक्षा अधिकारीयों ने उसे नष्ट करवा दिया.
सवाल ये भी है कि जैदी ने ऐसा क्यूँ किया. जाहीर है पिछले कई वर्षों से इराक के लोग जो जीवन जी रहे हैं उसके लिए अमेरिका सबसे ज्यादा जिम्मेदार है या फ़िर जो भी हो. रोज मर-मर कर जीने लायक हो गए इस इस जीवन ने जैदी जैसे पढ़े-लिखे युवाओं को ऐसा करने पर मजबूर कर दिया है. वो पेशे से पत्रकार जरूर है लेकिन वो ख़बरों से समाज और लोगों की जिंदगी बदलने के जुमले को आजमाते-आजमाते उब गया लगता है और आख़िर में उसने वो कर दिया जो व्यवस्था से मायूस युवा हर देश में करते हैं. जैदी के साथ-साथ अन्य लोगों को भी शायद यही लगता है कि इराक की दुर्दशा के लिए अमेरिका ही सबसे ज्यादा दोषी है और कलम की ताकत को आजमाकर थक चुके जैदी ने तब जूते का सहारा लिया. दुनिया के हर हिस्से का आम आदमी आने वाले कल में अपने जिंदगी में बदलाव की उम्मीद लिए जी रहा है और जो भी उसे रोकने का प्रयास करेगा वो उसका विरोध करेगा. जैदी ने तो दुनिया को बस विरोध का एक नया हथियार भर दिया है. अमेरिका इसे बर्दाश्त कर भी कैसे सकता था उसने विरोध के इस नए प्रतिक को नष्ट करवा दिया. लेकिन क्या इस नए हथियार को रोका जा सकता है. शायद नहीं...लेकिन फ़िर भी इस घटना ने दुनिया को और खासकर आम लोगों को विरोध का एक हथियार तो दे ही दिया. कि जो तुम्हे लगातार जूते मार रहे हैं और तुम्हारी जिंदगी को नरक बनाये हुए हैं उन्हें तुम भी जूते मारो...
Saturday, 13 December 2008
काहे का प्रशासनिक(?) सुधार आयोग...
जाहिर सी बात है कि प्रशासनिक सुधार के इस प्रयास में भी जातीय राजनीति की बू आ रही है. अगर सरकार को पिछडी जातियों के लोगों को समुचित प्रतिनिधित्व दिलाना ही है तो इसके लिए उनके लिए सीटें आरक्षित हैं और इसके लिए अलग से उन्हें ज्यादा मौके और उम्र की छूट देने की कोई जरूरत मालूम नहीं होती. अगर सामान्य वर्ग का आदमी २५ साल तक ही परीक्षा दे सकता है तो फ़िर दूसरे को इससे ज्यादा का मौका क्यों. क्या आयोग ऐसा मानता है कि आरक्षित वर्ग के आदमी के दिमाग में कोई चीज सामान्य वर्ग कि अपेक्षा कुछ साल बाद आती है. या फ़िर इस वर्ग के लोगों को फ़ेल होने के कुछ ज्यादा मौके देने लायक मानती है. ये पहले साफ़ होना चाहिए. आप अगर किसी को कोई सुविधा देते हैं तो उसके कारण को भी साफ़ करना चाहिए. जैसे मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग लोगों को इस आधार पर आरक्षण मिलता है कि वे सामान्य लोगों से समान मुकाबला नहीं कर सकते तो इस बात को असामान्य वर्ग के लोगों के लिए माना जाना चाहिए. किसी परीक्षा में पास होने के लिए सामाजिक पिछडापन कोई मसला नहीं हो सकता उसके लिए पढ़ाई करनी होती है. इस आधार पर किसी को वैशाखी नहीं दी जानी चाहिए. और अगर वाकई देश के प्रशासनिक ढांचे में सुधार करना है तो वैशाखी वाले लोगों को आगे करने की प्रवृति से बचना होगा. इसमें वही लोग लिए जायें जिनमे प्रशासन चला पाने की कुव्वत हो. दूसरी बात ये कि जो लोग पिछले दशकों में आरक्षण की मलाई खाकर मोटे हो गए हैं उनसे भी ये वैशाखी अब छीन लेनी चाहिए. अगर वाकई आप प्रशासन में सुधार लाना चाहते हैं तो... वरना आप इसे प्रशासनिक सुधार आयोग की जगह राजनीतिक रणनीति सुधार आयोग भी कह सकते हैं.
और अंत में...अगर सामान्य वर्ग से अलग वर्ग के लोगों को असामान्य का संबोधन सुनना बुरा लगा हो तो इसके लिए माफी...
Monday, 8 December 2008
चुनाव ही नहीं हो जनता का आखिरी हथियार...
५ राज्यों में विधानसभा चुनाव के परिणाम आ गए. कांग्रेस और भाजपा ने मिलकर इन राज्यों की सत्ता आपस में बाँट ली. अन्य सभी दल महज तमाशबीन बनकर रह गए. वैसे भी इन राज्यों में अन्य दलों के लिए कोई स्कोप नहीं था. हा राजस्थान में जरूर अन्य दलों और निर्दलीय विधायकों के पास मौका है कि वो लोकतंत्र की मलाई खा सकें. जीत के बाद जीतने वाले दलों के नेताओं ने कहा कि आतंकवाद समेत सभी मुद्दें बेमानी साबित हुए और हमें जीत से नहीं रोक सके. इन्हें इस बात कि खुशी है कि आतंकवाद कोई चुनावी मुद्दा नहीं बन सका. अगर ऐसा सच में हुआ है तो ये खेदजनक है. अगर लोग अपनी सुरक्षा को चुनाव में मुद्दा नहीं बना सकते तो फ़िर तो भगवान ही इसका मालिक है. इसके साथ ही एक और काम होना चाहिए कि किसी भी दल को ये अधिकार नहीं मिलना चाहिए कि वो आतंकवाद जैसे मसले को चुनाव में भुनाए. लोगों को भी ये समझना होगा कि चुनाव ही आखिरी हथियार नहीं है. अगर जीतने के बाद भी कोई सरकार उनकी सुरक्षा के साथ ढिलाई बरतती है तो लोगों को सरकार से सवाल करना चाहिए। लोगों को अपनी सुरक्षा और विकास जैसे मसलों पर मुखर होना होगा तभी हम भारत को दुनिया की सबसे बड़ी लोकतंत्र के रूप में वास्तव में स्थान दिला पायेंगे.
बटला हाउस में मुठभेड़, मालेगांव धमाकों और मुंबई में हमले जैसे मसले पर जिस तरह से देश ने राजनीति होते हुए देखी वो हमारे लोकतंत्र के लिए कहीं से भी सहीं नहीं माना जा सकता। लेकिन इस बार आतंकवाद के मसले पर यहाँ के मुस्लिम भाई लोगों ने जिस तरह से मुखर होकर विरोध किया यही रवैया उन्हें आगे भी जारी रखना होगा ताकि यहाँ का बहुसंख्यक हिंदू समुदाय उनपर भरोसा कर सके. यहाँ के हिंदू समुदाय को भी धर्म के मामले को केवल राजनीति के लिए उठाने वाले लोगों से सावधान होना होगा. लोगों को राजनितिक बिरादरी में उस तबके को आगे करना होगा जो समाज के लिए काम करने के मकसद से राजनीति में आ रहा है और ऐसे लोगों को राजनीति से बाहर करना होगा जो केवल सत्ता का सुख भोगने के लिए राजनीति में आ रहे हैं.
अमेरिका में ओबामा की जीत पर जश्न मनाने वाली भारतीय जनता को अगर अपने लिए काम करने वाला और परिवर्तन लाने वाला नेता चाहिए तो पहले उन्हें ख़ुद मुखर होना होगा और फ़िर जब वे ऐसा नेता चुनेंगे जो दागदार न हो और अपराधी न हो और जो जाति-धर्म जाति-धर्म बात न कर विकास जाति-धर्म की बात करे तभी यहाँ सही मायने में लोकतंत्र का विकास हो पायेगा.
Sunday, 7 December 2008
बात बनती नहीं दिखती ऐसी हालात में.....
भीगता हूं सदा मैं ही बरसात में।
बात बनती नहीं ऐसे हालात में,
मैं भी जज़्बात में, तुम भी जज़्बात में..."
मैं कौन हूँ। शायद उन बदनसीब देशों में से एक का नागरिक जो आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित हैं। मैं भारत का भी हो सकता हूँ, पाकिस्तान का भी, अफगानिस्तान का भी और इराक का भी या शायद ऐसे ही किसी और बदनसीब देश का नागरिक. जो रोज-रोज और कहें तो हर वक्त सहमा हुआ है एक अनजान डर से. दफ्तर जाते हुए, सिनेमा हॉल जाते हुए, बाज़ार जाते हुए या बस और रेल में सफर करते हुए भी या फ़िर किसी पार्क में बैठते हुए भी. उसे डर है कि कहीं भी किसी भी वक्त कोई उसपर हमला कर सकता है. अगर मैं भारत का रहने वाला हूँ तो मेरे लिए पहले से ही ६ दिसम्बर, १५ अगस्त और २६ जनवरी जैसे कई दिवस हैं जब हम काफ़ी सतर्क हुआ करते थे. अब ऐसी कोई सम्भावना नहीं जताई जा सकती कि इसी समय आतंकवादी हमला कर सकते हैं. जैसा कि पिछली कुछ घटनाएं देखी गईं. उसके अनुसार देश में कहीं भी कभी भी आतंकी हमला कर सकते हैं. कोई उसे रोक नहीं सकता. भारत के प्रमुख शहर मुंबई में पिछले सप्ताह हमला हुआ. ये हमला रोका नहीं जा सका. जब हमला हो गया तब सिस्टम जगा और अब ये तय किया जा रहा है कि किसकी विफलता से हमला हुआ. सभी सुरक्षा एजेंसियां एक-दूसरे के ऊपर विफलता का ठीकड़ा फोड़ने में लगी है. और अब जब आम लोग अपनी सुरक्षा की मांग के साथ सड़कों पर उतरने लगें हैं तो ये राजनितिक बिरादरी को चुभने लगा है. ये तो अपेक्षित था ही. हमारे देश की राजनीतिक बिरादरी को जनता को उल्लू बनाकर सत्ता में बने रहने की आदत पड़ गई हैं. उन्हें जनता द्वारा अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना कभी पसंद नहीं आयेगा और जनता को मुखर होकर अपनी बात रखनी होगी. जनता को देश की राजनीतिक बिरादरी को ये समझाना होगा कि उसपर शासन वही करेगा जो उसके लिए काम करेगा।
शुक्रवार को आधी रात को दिल्ली के इंदिरा गाँधी हवाई अड्डे पर गोलियां चलने की आवाज हुई। वहां मौजूद सभी लोग जान बचाने के लिए जहाँ जगह मिली दुबक लिए. वहां भी वही मेरे जैसा आम आदमी था. जो अपना काम करने के लिए, घुमने के लिए या फ़िर किसी और कारण से हवाई जहाज की यात्रा करने के लिए हवाई अड्डे पर आया था. किसने गोली चलाई नहीं मालूम. लेकिन खौफ पैदा हुआ मेरे दिमाग में. मुझे उस वक्त फ़ोन करके अपने घर वालों को ये बताना पड़ा की मैं सुरक्षित हूँ॥ मैं वही आम आदमी हूँ..
ऐसा नहीं है कि इस डर में केवल भारत का आदमी जी रहा है. अगर मैं पाकिस्तान, इराक और अफगानिस्तान का नागरिक हूँ तो मेरे अन्दर भी डर है. यहाँ के लोग दोहरी मार झेल रहे हैं. कभी उन्हें आतंकवादियों की गोलियां अपना निशाना बनाती है तो कभी विदेशी सैनिकों की तोपें और मिसाइलें उनका घर तबाह कर जाती है. विशेषकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर रहने वाले लोग रात को सोते वक्त इस बात को यकीनी तौर पर नहीं कह सकते कि कल सुबह भी उनका घर जैसे का तैसा रह जाएगा. हो सकता है आतंकवादियों को खोजती हुई अमेरिकी आँखें और उसके बाद चली मिसाइलें रात के अंधेरे में घर समेत उनके अस्तित्व को नेस्तनाबूद कर दे. आतंकी उनके बच्चों को जबरन आतंकी बनाने के लिए ले जाते हैं और देशी-विदेशी सैनिक आतंकियों का परिजन होने के कारण उठा ले जाते हैं. यहीं हैं मेरी जिंदगी. मुझे उस शख्स से डर है जिसे मैं नहीं जनता. इन सभी देशों का नागरिक होने के नाते मुझे बस ये मालूम है कि मेरे भी जज्बात हैं. हम सभी के जज्बात हैं. भारत में हमले हुए, पाकिस्तान के पेशावर में हमले हुए, अफगानिस्तान की पहाडियां बम-गोलों के शोर से भरी पड़ी हैं.. किसने किए- कोई हमारे बीच का है. पाकिस्तान पर शक जताया गया. इससे पाकिस्तान के लोगों की भावनाए आहत हुई और वहां प्रदर्शन हुए. लेकिन जाहीर सी बात है कि हमला करने वाले चाहे जो भी हो वो आम तबके से ही आता है और मरने वाले भी आम लोग हैं और मौत का ये सौदा करने वाले इसमें कहीं भी शिकार नहीं हैं. मरने वाले में, उसके बाद रोने वाले में और उसके बाद हर पल को डर-डर कर जीने वाले में मैं ही हूँ...दुनिया का आम आदमी...
Tuesday, 2 December 2008
मुंबई धमाकों से उभरे हुए सूरमा...
जनता द्वारा अपने अधिकारों के लिए खड़े होने पर सबसे ज्यादा भड़के भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी। मुंबई में मारे गए लोगों और शहीद हुए जवानों को श्रधांजलि देने के लिए जमा हुए लोग नकवी जी की आंखों में चुभे और नकवी जी ने कहा कि जो लोग राजनेताओं का विरोध कर रहे हैं वे लोकतंत्र के दुश्मन हैं और उनका किसी न किसी से सम्बन्ध होगा। उन्होंने कहा कि इन सब की जाँच होनी चाहिए और पता करना चाहिए कि ये किनके लोग हैं. नकवी जी ने आगे कहा कि ये सारा नाटक पश्चिमी सभ्यता से प्रेरित है और लिपिस्टिक लगाने वाली औरतें ऐसा कर रही हैं. नकवी जी ने जो भी कहा तुंरत भाजपा ने उससे किनारा कर लिया। पार्टी प्रवक्ता ने तुंरत कहा कि जो भी नकवी जी ने कहा वो उनका अपना मत है.
दूसरे दिग्विजयी बने केरल के मुख्यमंत्री। शहीद मेजर संदीप उनिकृष्णन के घर पर राजनीति करने आने वाले नेताओं के कारन संदीप के पिता ने उनसे मिलने से मना कर दिया। मुख्यमंत्री महोदय ने कह दिया कि अगर ये शहीद न होते तो यहाँ कुत्ता भी नहीं आता.
मुंबई हमलों की भेंट चढ़े पूर्व गृह मंत्री शिवराज पाटिल जी को तो अभी लोग नहीं ही भूले होंगे। अभी हाल ही तक उनपर देश के आतंरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी थी. उन्होंने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया भी. जब भी देश में कहीं कोई हमला हुआ उन्होंने लोगों को सांत्वना देने के लिए दार्शनिक अंदाज में भाषण दिया. लोग उनकी महानता को नहीं समझ पाये और मीडिया वालों ने तो अति ही कर दी. उनके पदनाम के साथ जबतक भूतपूर्व नहीं लगवा दिया चैन से नहीं बैठे.
महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री आर आर पाटिल जो की पिछले कुछ दिनों से कुछ ज्यादा ही गदा भांज रहे थे को भी मुंबई धमाकों ने ठिकाने लगा दिया. बाहरियों के ख़िलाफ़ राज ठाकरे द्वारा चलाये जा रहे रहे अभियान को समर्थन देने वाले आर आर पाटिल ने मुंबई में हुए धमाकों और हमलों के बाद कहा कि मुंबई एक बहुत बड़ा शहर है और बड़ी-बड़ी शहरों में छोटी-छोटी घटनाएँ होती रहती है. मतलब की जिस घटना की प्रतिक्रिया पूरी दुनिया में हुई है वो घटना गृहमंत्री और उपमुख्यमंत्री जैसे गंभीर पद पर बैठे हुए शक्श को मामूली लग रहा है. जिस राज्य के वे गृहमंत्री हैं उसकी राजधानी में आतंकी आए सरेआम उन्होंने लोगों पर गोलिया बरसाई और बड़े-बड़े होटलों में बंधक बना लिया और जिन्हें काबू करने के लिए देश भर से सैकड़ों सेना के जवान और कमांडो बुलाये गए जिन्होंने ६० घंटे की लड़ाई के बाद कई लोगों की जान खोकर आतंक का खत्म किया. वही पाटिल जी को छोटी घटना लग रही थी. पाटिल जी ऐसी गलती उनपर भारी परी. उन्हें पद छोड़ना पड़ा. अब वे न तो गृह मंत्री हैं और न उप मुख्यमंत्री. अब शायद केवल विधायक के रूप में सोचने पर उन्हें मामले की गंभीरता का अहसास हो.
Monday, 1 December 2008
देश के वीर बेटों को शत-शत नमन...
पूरे देश ने इन बेटों के बलिदान को देखा. पूरे देश ने टीवी के परदे पर मुंबई में दहशत के माहौल को देखा, जब चारों ओर आतंक का राज था. स्टेशन पर दर्जनों लोग मार दिए गए थे, ताज होटल, ओबेराय होटल और नरीमन हाउस में कई लोग मार दिए गए थे और सैकडों लोग आतंकवादियों के चंगुल में फंसे हुए थे. आतंकी खुलेआम मौत का तांडव कर रहे थे. ऐसे वक्त में देश के इन बेटों ने मोर्चा संभाला और जब सारा देश अपने घरों में बैठकर टीवी देख रहा था इन वीरों ने गोलियों का सामना कर आतंक का खात्मा किया. जब देश और दुनिया के लोग मुंबई में फंसे अपने परिजनों को फ़ोन कर कह रहे थे कि अपने दरवाजे को ठीक से बंद कर ले और घर के बाहर कतई न निकलें. तब देश के वीर जवान ताज होटल, ओबेराय होटल और अन्य खतनाक जगहों पर घुस रहे थे. ऐसे वक्त में इनके परिजन भी इन घटनाओं को देख रहे होंगे और उन्हें भी मालूम था कि उनके बेटे मौत का सामना करने जा रहे हैं. देश के इन बेटों ने ये लडाई लड़ी और तभी रुके जब आतंक का खात्मा हो गया. कई ने अपनी जाने गवाईं, कई अभी भी अस्पतालों में पड़े हुए हैं. कई ने अपने आस-पास से गोलिओं को गुजरते देखा और कई ने दुश्मनों को अपना निशाना बनाया. देश अब फ़िर चैन की साँस ले रहा है...लेकिन सबकी नम आँखें इन वीर बेटों को शत-शत नमन करती है...जिन्होंने इस लिए अपनी जान गवां दी कि देश की अस्मिता पर कोई सवाल न उठे और देश का आम आदमी खुले आकाश के नीचे साँस ले सके और अपने घर की दरवाजों और खिड़कियों को खोल कर बाहर से हवा आने दें...एक बार फ़िर इन जवानों को शत-शत नमन...