Sunday 12 December 2010

इस बार बिहार ने भ्रष्टाचार पर एक रास्ता दिखाया है...

ऐसे वक्त में जब देश हर स्तर पर पैठ बना चुके भ्रष्टाचारी रुपी महारथियों से पार पाने के लिए त्राहिमाम कर रहा है और राजनीतिक नेतृत्व इस पर कुछ भी ठोस कर पाने में खुद को असहाय महसूस कर रहा है ऐसे वक्त में एक बार फिर बिहार एक नए जोश के साथ हमारी व्यवस्था में पैठ बना चुकी इस बीमारी के निदान के लिए आगे आया है. आज वहां की सरकार द्वारा उठाये गए दो कदमों का जिक्र करना जरुरी है.

पहली घटना--
बिहार में भ्रष्टाचार में लिप्त पूर्व मोटरयान निरीक्षक (एमवीआई) की सम्पत्ति जब्त करने के न्यायालय के आदेश के बाद सरकार ने अब उस भवन में विद्यालय खोलने की तैयारी प्रारंभ कर दी है। समस्तीपुर जिले में स्थित एमवीआई रघुवंश कुंवर के पैतृक गांव चैरा में बने मकान में विद्यालय खोलने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। परिवहन विभाग के अधिकारी कुंवर के पास समस्तीपुर के अलावा पटना में आलीशान मकान और जमीन है। उनके मकानों और जमीन के अधिग्रहण के लिए संबंधित जिलाधिकारियों को एक माह के अंदर तमाम प्रक्रियायें पूरी कर लेने को कहा गया है। उल्लेखनीय है कि भ्रष्टाचारियों की अवैध सम्पत्ति जब्त करने संबंधी कानून के तहत कुंवर और उनकी पत्नी ललिता देवी के पास मिली लगभग 45 लाख रुपये की अवैध सम्पत्ति जब्त होगी। सतर्कता विभाग के विशेष लोक अभियोजक राजेश कुमार के अनुसार रघुवंश के पास मौजूद आय से अधिक 44,99,318 रुपये की चल और अचल सम्पत्ति को जब्त करने के लिए विभाग की विशेष अदालत में इस वर्ष 12

अगस्त को एक मामला दायर किया गया था। गौरतलब है कि शिकायत मिलने के बाद 24 सितंबर 2008 को सतर्कता विभाग के अधिकारियों ने कुंवर को 50 हजार रुपये रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा था। जांच के बाद विभाग ने उनके खिलाफ मई 2009 में आय से अधिक सम्पत्ति का मामला दर्ज कराया था।

दूसरी घटना--
दूसरी महत्वपूर्ण घटनाक्रम के तहत बिहार में स्थानीय क्षेत्र विकास निधि पर लगे भ्रष्टाचार के दाग धोने के प्रयास के तहत राज्य सरकार ने इस कोष को समाप्त करने का ऐतिहासिक निर्णय किया है. बिहार में विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों को स्थानीय क्षेत्र विकास कोष से हर वर्ष एक एक करोड़ रुपये दिए जाते हैं। स्थानीय क्षेत्र विकास विधायक और विधानपार्षद निधि की बिहार में शुरुआत वर्ष 1984 में की गई थी। इस निधि के तहत शुरुआत में हर सदस्य को प्रतिवर्ष विकास कार्यो के लिए एक लाख रुपये दिए जाते थे। बिहार में विधायक और विधान पार्षद स्थानीय क्षेत्र के विकास निधि के 26साल पुराने इतिहास में एक लाख रुपये प्रतिवर्ष से शुरू होकर यह सफर एक करोड़ रुपये तक पहुंचा। वर्ष 1986 में इस राशि को बढ़ाकर प्रतिवर्ष पांच लाख रुपये कर दिया गया, जबकि इसके चार साल बाद यानि 1990 में यह राशि बढ़ाकर 10 लाख रुपये कर दी गई। वर्ष 1996 में स्थानीय क्षेत्र विकास निधि में एक बार फिर बढ़ोत्तरी की गई जो बढ़कर 50 लाख रुपये हो गई। 2003 में 50 लाख रुपये की राशि को बढ़ाकर एक करोड़ रुपये कर दिया।

अब आगे चलकर केंद्र सरकार को भी प्रतिवर्ष सांसदों को मिलने वाले दो करोड़ रुपए के सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास निधि [एमपीलैड] को समाप्त करने के लिए तत्परता दिखानी चाहिए.

बिहार की नयी सरकार द्वारा उठाया गया ये कदम आज देश भर में व्यवस्था में पैठ बना चुके घोटालेबाजों के लिए एक सबक बन सकता है बशर्ते कि हमारी राजनीतिक बिरादरी ऐसा करने की हिम्मत जुटाए और ऐसा कदम उठाये कि अपना काम करते वक्त घुस मांगते हुए किसी भी सरकारी कर्मचारी के सामने भविष्य की बर्बादी का मंजर घूम जाये. इतना ही नहीं जैसा कि हमारे सिविल सोसाइटी के लोग लगातार मांग करते आ रहे हैं कि एक ऐसी राष्ट्रीय एजेंसी बने जो करोडो-अरबो डकार जाने वाले राजनीतिज्ञों-कारोबारियों और नौकरशाहों के नेक्सस को बिना किसी दबाव के दण्डित कर सके.
बिहार में उठाया गया ये स्वागतयोग्य कदम भ्रष्टाचार उन्मूलन की दिशा में ऐतिहासिक शुरूआत होगी।