Tuesday 5 June 2007

'काश मैं किसी अमीर का कुत्ता ही होता'

कल बाज़ार में देखा एक युवती अपने कुत्ते को पकड़ कर उसे बाज़ार घुमा रही थी। अब पता नही मैं नही समझ पाया कि कहीँ वो कुत्ता वहाँ शॉपिंग के लिए तो नही आया है । अब भाई अमीर लोगो का कुत्ता है तो हो सकता है उसे भी अमीरो का शौक़ लग गया हो । या फिर परिवार के लोग अपने स्टैंडर्ड का बनाने के लिए उसे अपने-तौर तरीके सिखाने के लिए अपने साथ-लाते रहे हो। कभी किसी फिल्म में देखा था नाम तो याद नही है कि एक अमीर आदमी के कुते के रख-रखाव को देखकर उसका नौकर उस कुत्ते से जलकर कहता है कि काश मैं अपने मालिक का कुत्ता ही होता और इसके लिए वह भगवान को कोसता भी है। यहाँ मैंने इस फिल्मी कहानी को केवल इसलिये कहा कि मुंझे इन्सान और अमीरो के कुत्तो के बीच तुलना करनी थी ।

कल ही एक और घटना हुई । मैं अपने कॉलोनी में वापस आने के लिए सड़क पाद कर रहा था अचानक मेरी निगाह सड़क के उस पार से जाते हुए एक ताज़ा तरीन कुत्ते पर पड़ा । शक्ल से अमीर आदमी का कुत्ता लग रह था । उसके क़द-काठी को देखकर मन में दर भी लगा कि कही सड़क पार कर मुझे ही निशाना बनाने कि फिराक में तो नही है । लेकिन तभी लगा कि वो खुद एक तरफ सिमटा जा रह । दुसरी ओर देखा तो गली का एक छोटा सा मरिअल कुत्ता उसकी ओर बडे जा रह था । बड़ा दिलचस्प सीन था । करीब तीन फूट उचा, हथ्था -कट्ठा कुत्ता एक मरिअल कुत्ते को देखकर पीछे भागे जा रह था । और वो जाकर रुका वहा जहाँ दो लड़के खरे थे । उनके बिच जाकर वो खड़ा हो गया वो दोनो उसके मालिक भी नही थे फिर भी उन इंसानों के बीचउसे कम दर लग रह था ।

अब क्या कहे इंसानों ने उसे इतना प्यार दे दिया है कि वो अपनी बिरादरी को ही अपने दुश्मन समझने लगा। वैसे भी हमारे हाई -फाई जमात में में कुत्तो का क्रेज कुछ ज्यादा ही है विशेषकर महिलाओ में । कई बार तो कई पुरुषो तक को मैंने कहते सुना है कि भैया काश मैं इस घर का कुत्ता ही होता।

4 comments:

Anonymous said...

वाह संदीप भाई... इसी बात पर काका हाथरसी की एक कविता सुनिये!


पिल्ला बैठा कार में, मानुष ढोवें बोझ
भेद न इसका मिल सका, बहुत लगाई खोज

बहुत लगाई खोज, रोज़ साबुन से नहाता
देवी जी के हाथ, दूध से रोटी खाता

कहँ 'काका' कवि, माँगत हूँ वर चिल्ला-चिल्ला
पुनर्जन्म में प्रभो! बनाना हमको पिल्ला

Anonymous said...

दुखी क्यों होते हो मित्र। अमीर आदमी बनने और उसका कुत्ता बनने, दोनों का विकल्प खुला है। अमीर बन जाएँगे तो कुत्ते आ जाएँगे, वर्ना आप भी कुत्ते बनकर मलाई खा सकते हैं। क्या प्रेरणादायक पुरूषों की कमी है।

Udan Tashtari said...

:) अब क्या कहें, आप तो खुद ही सब समझते हो.

संजय बेंगाणी said...

क्या कहें, इंसान इंसान को भूल कूत्ते को गले लगाता है, और कुत्ता कुत्तापन भूल इंसानो के बीच खुद को सुरक्षित महसुस पाता है.